Friday, June 24, 2011

जीवन



जून २००० 
सार्थक जीवन, सही मायनो में जीना अथवा वास्तविक जीवन क्या है, यह प्रश्न हर कोई कभी न कभी  खुद से पूछता है. जीने को तो हम सभी जिए चले जा रहे हैं. लेकिन अपनी सारी योग्यताओं, क्षमताओं को पहचाने बिना, हमें अपने सामर्थ्य का ज्ञान ही नहीं है. जीवन की गहराई में गए बिना एक अधूरा-अधूरा सा उथला-उथला सा जीवन जीते जाते हैं कि जीवन की शाम हो जाती है. कितने ही निराधार भय, अनेकों व्यर्थ दुश्चिंताएं, व्यर्थ की कल्पनाएँ करते रहते हम अपने आस-पास की सच्चाई को नहीं देखते. बस कल्पना के असत्य को ही सत्य मान कर उसके पीछे दौड़ते रहते हैं. सत्य ठोस और स्थूल नहीं होता सो हम उसे देख नहीं पाते. मन को व्यर्थ के झाड़-झंखाड़ से भरे उन्हीं कंटीली पगडन्डियों पर उलझते चलते रहते हैं. अपने को सीमा में बांध हम एक कैदी का सा जीवन व्यतीत करते हैं, जबकि हमारे भीतर उन्मुक्त गगन में उड़ने की क्षमता मौजूद है. बस जागरण की ओर कदम बढ़ाने भर की देर है.   

2 comments:

  1. जिंदगी को पहचानने में हम भूल कर जाते हैं ..आपके विचार ठहरने के लिए मजबूर करते हैं

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  2. विचारणीय सवाल। सच कहता हूं कई बार हम कुछ करना चाहते हैं, लेकिन लोग क्या कहेगे, ये सोचकर पीछे हट जाते हैं। मेरा मानना है कि ऐसा सोचने वाले अपने जीवन का रिमोट दूसरों के हाथ में क्यों सौंप देते हैं, मेरा जीवन है, मुझे खुद फैसला करना होगा।
    आपका ये संदेश युवाओं का मार्गदर्शन करने वाला है।

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