Wednesday, June 22, 2011

कर्म


जून २०००
 किसी कर्मयोगी ने ठीक ही कहा है, कर्म ही पूजा है. कर्म के द्वारा ही हम अपने तथा अपने आस-पास के वातावरण, परिस्थितियों तथा स्तर में सुधार ला सकते हैं. कर्मयुक्त जीवन उहापोहों से भी दूर रहता है. किन्तु कर्म सद्कर्म हो, ऐसा कर्म जो नैतिकता, धार्मिकता तथा आध्यात्मिकता के दायरे के अंतर्गत ही हो, जो स्वार्थ युक्त न हो. ऐसा कर्म अपने आप ही भक्ति बन जायेगा. ईश्वर पर विश्वास किये बिना मानव का काम चल ही नहीं सकता, उसी का बनाया हुआ यह मायाजाल है, सो शेष सब कुछ, यानि फल आदि उसी पर छोड़ कर चिंतामुक्त रहने में ही भलाई है.  

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