मई २०००
किसी भी संवेदनशील हृदय को प्रकृति अपनी सुंदरता से मोह लेती है, फिर इस सुंदरता को रचने वाले के प्रति आकर्षण जगता है. इस तरह अनजाने ही आध्यात्मिकता का एक नन्हा सा बीज अंतर में बो दिया जाता है, मौसम आते जाते रहते हैं, कभी प्रतिकूलता मिलती है कभी अनुकूलता और अंकुर को पौधा बनने में बरसों लग जाते हैं, मनीषियों, ऋषियों, संतों और अवतारों के जीवन उनके सदुपदेशों के रूप में इस पौधे को जल और भोजन मिलता है और धीरे धीरे यह बढ़ने लगता है. यात्रा आरम्भ तो हो जाती है लेकिन इसे दिशा मिलती है सत्संग से.
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