मई २०००
जो टिकता नहीं वह जगत है और जो मिटता नहीं वह परम सत्य है. बस इतनी सी बात समझ में आ जाये तो ईश्वर के मार्ग पर चलना सहज हो जाता है. यह जगत हमें कई पाठ पढ़ाता है, ठोक-पीट कर इस काबिल बनाता है कि हम उस परम को जान सकें. जब कभी कृतज्ञता के भाव के कारण हृदय भर आता है, अथवा साधना के कारण सुख का अनुभव होता है तब भी यह स्मरण रखना होगा कि यह भी एक अवस्था है जो टिकने वाली नहीं है, सुखद अथवा दुखद दोनों ही अवस्थाओं से जो परे नहीं गया वह परम को नहीं पा सकता. अनुकूल या प्रतिकूल दोनों में जो सम रहना सीख गया वही उस पथ का यात्री है. हमारे भीतर अमृत भी है और विष भी, पर सत्य दोनों के पार है.
क्योंकि दुःख से तो हर इंसान बचना ही चाहता है पर सुख की चाह ही उसे फिर-फिर दुःखों में घसीट लाती है,इसलिए दोनों ही के पार जाना होगा.
ReplyDelete