अप्रैल २०००
ईश्वर हर क्षण हमारे साथ है, हमारे आस-पास है. हम अपने-आप में इतने खोये रहते हैं कि कुछ देखना नहीं चाहते, कुछ महसूस करना नहीं चाहते. हमारे चारों ओर प्रकृति का अतुलित खजाना बिखरा पड़ा है. यह ब्रह्मांड, अनगिनत सितारे, सभी तो उसकी याद दिलाते हैं.. हमारे इतने कार्य कैसे अपने-आप पूर्ण हो जाते हैं... शरीर के अंदर चलने वाला रक्त प्रवाह व नाडी स्पंदन क्या उसकी झलक नहीं दिखाता... लेकिन हम अपने को सर्वसमर्थ मानकर उस सत्ता को भूल जाते हैं. जिसके कारण से हम हैं, जो हमारे भीतर विवेक है, सद् है, आनंद है. हमारे जीवन में जहाँ कहीं भी विशुद्ध स्नेह, विशुद्ध आनंद है, वहीं ईश्वर है.
yahi sach hai...
ReplyDeleteजै हो।
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कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
आपका दर्शन तो ऐसा प्रतीत होता है कि आपने भगवान से साक्षात्कार कर लिया है
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