Wednesday, June 29, 2011

मानवता



जुलाई  २००० 
मानव का सतत् प्रयास यही होता है कि वह उन्नति करे, आगे ही आगे बढ़े... अनंत की ओर उसका प्रस्थान उसी ऊंचाई की तलाश है, जहाँ वह पहुंचना चाहता है. अपने आस-पास के समाज को यदि हम गहराई से देखें तो भौतिक उन्नति के चिह्न स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं, पर मात्र भौतिक उन्नति ही काफ़ी नहीं, एक और क्षेत्र है आत्मिक उन्नति का. जहाँ आगे बढ़ने के लिये ईश्वरीय प्रेरणा सहायक होती है. कुछ लोग कहते हैं कि ईश्वर को मानव ने अपने आदर्शों का मूर्त रूप बनाकर स्थापित किया है. ऐसा कहते हुए वे मानवीय चेतना को परम तक पहुंचने में समर्थ मानते हैं, वह ऐसी स्थिति है जहाँ मानव और ईश्वर के बीच कोई भेद नहीं रह जाता. कोई वहाँ पहुँच चुका है यह बात अन्यों को प्रेरणा देती है. जैसे पानी का स्वभाव है ऊपर से नीचे की ओर बहना, मानवता का स्वभाव है नीचे से ऊपर की ओर बढ़ना.

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