Friday, July 15, 2011

यथार्थ और आदर्श

जनवरी २००१ 
मानव के पास भाव, विचार, और विवेक का बल है, लेकिन वह उसका सदुपयोग नहीं कर पाता. अपने बाहरी व्यक्तित्व को सजाने- संवारने का प्रयत्न तो करता है किन्तु भावनात्मक, बौद्धिक और आत्मिक व्यक्तित्व को निखारने का प्रयास नहीं करता, सो आडम्बर और पाखंड पूर्ण जीवन जीता है. भीतर से हम जितना सत्य के निकट होंगे, यथार्थ का सामना करेंगे, वास्तविकता को पहचानेगें उतना ही आंतरिक व्यक्तित्व व्यक्त होगा, अन्यथा दोहरी जिंदगी जीने को विवश होंगे. हमें अपने आदर्शों को  मूर्त रूप देना होगा तथा उसे जीवन में यथासम्भव उतरना होगा. सच्चा आनंद, मन की शांति का अनुभव हमें तभी होता है जब हम आदर्शों के निकट होते हैं.

2 comments:

  1. पूरी तरह सहमत, सार्थक पोस्ट

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  2. बिल्‍कुल सही कहा है आपने ।

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