Tuesday, October 25, 2011

एकै साधे सब सधे


जून २००२ 

कबिरा इस जग आये के अनेक बनाये मीत
जिन बांधी इक सँग प्रीत वही रहा निश्चिन्त
उस एक से जब लौ लग जाती है तो जीवन फूल की तरह हल्का हो जाता है. हम रुई के फाहे की तरह गगन में उड़ने लगते हैं. वह एक इतना प्रिय है और इतना अपना कि दिल भर जाता है. उसकी कृपा असीम है. उसका बखान करना जितना कठिन है उतना सरल भी. एक शब्द में कहें तो वही प्रेम है. अंतर की गहराई में जो प्रेम है उसके लिये और सृष्टि के लिये... वह उसी का है. हमें वहीं जाना है जहाँ न राग है न द्वेष है, न संयोग न वियोग, न दिन न रात्रि, न अच्छा न बुरा. उस अद्भुत लोक में प्रवेश करने के लिये ध्यान की आवश्यकता है. ध्यान हमारे हृदय में भक्ति भाव ही उत्पन्न नहीं करता है, हमें ईश्वर का निमित्त बनाता है. हम इस महासृष्टि में अपने योगदान को दे पाने में सक्षम होते हैं.

4 comments:

  1. Bahut hi gyan wardhak lekh hi ..
    padhkar bahut achcha laga,

    apko diwali ki hardi subhkamnaye.

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  2. प्यार हर दिल में पला करता है,
    स्नेह गीतों में ढ़ला करता है,
    रोशनी दुनिया को देने के लिए,
    दीप हर रंग में जला करता है।
    प्रकाशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!!

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  3. उस एक से ही तो लौ लगने की बात है!
    बढ़िया !

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