Friday, March 1, 2013

एक उसी की खोज सभी को


अप्रैल २००४ 
अस्तित्त्व आनंद स्वरूप है, वह प्रेम तथा ज्ञान स्वरूप है, वह आनन्दित होकर प्रतिक्षण अपना प्रसाद बांट रहा है. पर मानव के पास समय नहीं है कि उस आनंद को पाने के लिए जरा सा प्रयत्न भी करे. जब हम पर विपत्ति के बादल मंडराते हैं तो हम ईश्वर के निकट जाते हैं, हमारा लक्ष्य तब विपत्ति से छुटकारा मात्र होता है न कि उसके आनंद को पाना. वह अकारण दयालु है, वह हमारे जीवन में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करता है कि हम उसके निकट आयें. यदि इतने पर भी हम नहीं समझते तो मृत्यु का झटका लगता है, पुनः जन्म होता है और पुनः मरण...अंततः हम स्वयं ही कह उठते हैं, कभी इसका अंत भी होगा...क्यों हम व्यर्थ ही दुःख उठा रहे हैं, अरे, इस जीवन का कोई प्रयोजन भी है या फिर यूँही यह आना-जाना लगा हुआ है. तब अस्तित्त्व जान लेता है कि यह वक्त उचित है कि इसे अपना आनंद प्रदान किया जाये. वह भीतर से सद्प्रेरणायें भेजने लगता है, जीवन के रहस्यों पर से पर्दा उठने लगता है. तब भीतर प्रेम जगता है, आनंद मिलता है. सद्गुरु का इसमें बड़ा हाथ है उनके प्रेम का आश्रय लेकर साधक ईश्वर की ओर चल पड़ता है.

4 comments:

  1. कितनी शांति देती हैं आपकी बातें ....
    बहुत आभार अनीता जी ...

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    1. अनुपमा जी, सद्गुरु की कृपा है..

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    1. आभार धीरेन्द्र जी.

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