Wednesday, March 20, 2013

मुक्त हुए मिटती माया


जून २००४ 
मन की सौम्यता बनाये रखना ही अध्यात्म का लक्ष्य है, हमारा मन जब संसार की ओर उन्मुख होता है तो अपनी सौम्यता खो सकता है यदि सचेत न रहा, जब भीतर जाता है तो शांत अवस्था को प्राप्त होता है यदि सजग रहा, वहीं उसका वास्तविक घर है, जहाँ उसे पूर्ण विश्राम मिलता है. संतजन कहते हैं शरीर तो वह उपकरण है जो आत्मा को अपनी गरिमा प्रदान करने के लिए मिला है, मन भी वह उपकरण है जो उच्च चिंतन व मनन करने के लिए मिला है, व्यर्थ चिंतन करके सुखी-दुखी होने के लिए नहीं है. भीतर जाकर जो लौटा है उसके लिए संसार स्वप्न की भांति हो जाता है. वह  स्वाधीन हो जाता है, मुक्ति का सुख निराला है, जो शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता.  

6 comments:

  1. शरीर तो वह उपकरण है जो आत्मा को अपनी गरिमा प्रदान करने के लिए मिला है.

    बहुत ही सार्थक प्रस्तुति. आपका जीवन धन्य है.
    "स्वस्थ जीवन पर-त्वचा की देखभाल"

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  2. मन की सौम्यता बनाये रखना ही अध्यात्म का लक्ष्य है

    सार्थक प्रस्तुति

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  3. मुक्त हुए मिटती माया .

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  4. धीरेन्द्र जी, राजेन्द्र जी, रमाकांत जी व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !

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  5. sundar vicharo ka laybaddh prawah

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