Tuesday, March 26, 2013

मुक्त करे आनंद



अस्तित्त्व हमें बोलने, सुनने, देखने, सूँघने, व छूने की शक्ति प्रदान करता है ताकि हम उसके आनंद में भागीदार हो सकें. वह जब अपने आनंद को बांटना चाहता है तो इस सुंदर जगत का निर्माण करता है, अपने से ही वह इसे गढ़ता है, फिर जैसे माँ बच्चे को जन्म देती है, फिर उसे स्नेह देती है और स्नेह पाती है, वैसे ही वह भी आनंद का आदान-प्रदान करता है. मोह वश जैसे कभी सन्तान ही दुःख भी पाती व देती है, वैसे ही हम भी अपने कृत्यों के कारण दुःख पाते हैं, व उसे दुःख देते हैं, क्योंकि उसकी सबसे बड़ी पूजा प्रसन्न चित्त रहना है. चित्त जब निर्मल हो, प्रसन्न हो, समता में हो तब हम उसके निकट हैं और लेन-देन चल रहा है.

3 comments:

  1. होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  2. मुक्त करे आनंद के लिए सबसे बड़ी पूजा प्रसन्न चित्त रहना है. ,,
    होली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाए
    Recent post : होली में.

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  3. राजेन्द्र जी, व धीरेन्द्र जी, स्वागतम व आभार !

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