Friday, June 13, 2014

जिसकी डोरी उसके हाथ


यदि कोई साधना के पथ पर चलना चाहे तो ईश्वर उसके लिए सुविधा कर देते हैं. परमात्मा और सद्गुरु हर पल साधक को अपनी नजर में रखते हैं. एक पल के लिए भी वह उनसे जुदा नहीं है. उसके भीतर के अज्ञान को मिटाने के लिए भी वह तरह-तरह की परिस्थितयां जीवन में भेजते रहते हैं. हृदय में जब तक कोई भी कामना शेष रहे तब तक हम सत्य का अनुभव नहीं कर सकते, तो वह उसकी शुभकामना की पूर्ति करने में भी बाधा खड़ी कर देते हैं. साधक को अपने अंतर को पूर्णतया खाली करना है, सारे राग मिटाने हैं, जगत के माध्यम से जीवन में ऐसे कितने ही पल आते हैं जब उसे यह जांचने का मौका मिलता है कि भीतर समता बनी है या नहीं. ईश्वर के रूप में ही वह सुखद या दुखद परिस्थिति को स्वीकारता है. अपने जीवन की पूरी बागडोर प्रभु के हाथों में सौंप देना ही समपर्ण है. जहाँ भेद है वहाँ समपर्ण है ही नहीं. ध्यान में जो एकता अनुभूत हो ती है वही एकता यदि हर समय अनुभव करें तो बाह्य परिस्थिति हमें विचलित नहीं कर सकती. 

4 comments:

  1. ध्यान में जो एकता अनुभूत हो ती है वही एकता यदि हर समय अनुभव करें तो बाह्य परिस्थिति हमें विचलित नहीं कर सकती.
    ...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !!

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    1. स्वागत व आभार, सदा जी

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  2. अशेष कामना कैसे हो ? मन में है यही प्रश्न कब से ?

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  3. शकुंतला जी, एक उसी की कामना रह जाये तो शेष कामनाएं अपने आप विदा हो जाती हैं..

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