Saturday, June 14, 2014

द्रष्टा से जो जुड़ जाता है

अप्रैल २००६ 
मन की कल्पना ही हमें सुख-दुःख देती है, जो इस मन को कभी स्थिर कभी चलायमान देखता है, वही तत्व जानने योग्य है. जो हर एक के पीछे सामान्य सत्ता के रूप में स्थित है उससे जुड़े रहें तब प्रभु हमें बुद्धियोग देते हैं. उस जानने वाले को जानकर ही सन्त सहज हो जाते हैं और हमें भी वैसा ही बनाने का प्रयत्न करते हैं. हम जितने-जितने सरल व सहज होते हैं, उतने-उतने ही दुखों से दूर होते जाते हैं, जब हम सारे आग्रह छोड़ देते हैं तो जीवन अपने आप चलने लगता है. सारे कार्य तो वैसे भी हो रहे हैं, हम व्यर्थ ही स्वयं को कर्ता मानकर अभिमान का भार ढोते हैं. 

3 comments:

  1. सरलता ही साधुता है । सुन्दर प्रस्तुति ।

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  2. शकुंतला जी, स्वागत व आभार !

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