Tuesday, June 3, 2014

हर घड़ी पलकें बिछाये

अप्रैल २००६ 
साधक के हृदय में जब यह भाव जगने लगता है कि कौन सा वह पल होगा जब उसे परम अनुभव होगा, वह उससे मिलेगा जिसकी खबर तो आती है, जिसके चर्चे तो उसने बहुत सुने हैं, जिसकी झलक तो उसने बहुत देखी है पर जो अभी उससे छिपे हैं, वह तब कहीं फंसना नहीं चाहता. वह कहीं भी भटकना नहीं चाहता, वह हर घड़ी स्वयं को मुक्त रखता है ताकि उनका स्वागत कर सके. वह अपना हृदय उनके स्वागत में खाली रखना चाहता है, वह कोई चांस नहीं ले सकता, पहले ही इतना समय निकल गया है.  

6 comments:

  1. बिल्‍कुल सच कहा आपने ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्वागत व आभार सदा जी

      Delete
  2. परमानंद की प्राप्ति से बड़ा अनुभव और हो भी क्या सकता है।

    परमानंद की प्राप्ति से बड़ा अनुभव और हो भी क्या सकता है। लेमन ग्रास सब्ज़ी वालों के पास मिलती है वे लोग इसे चाय कहते हैं। इसे पांच मिनिट पानी में उबालके पीया जाता है। लम्बी घास की बंडल बनाके बेचते हैं इसे सब्जीवाले। कोलाबा सब्ज़ी मंडी में ये अक्सर आती है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार इस जानकारी के लिए

      Delete
  3. " कब मरिहौं कब भेटिहौं पूरन परमानन्द ।"
    कबीर

    ReplyDelete
    Replies
    1. शकुंतला जी, कबीर का यह वचन कितना सुंदर है

      Delete