Thursday, January 26, 2012

तत्त्वमसि श्वेतकेतु !


तत्व ज्ञान जब जीवन में उतरता है तो स्वयं को एक ऊँची स्थिति में हम पाते हैं, जहाँ से अपने-पराये का भेद नहीं दिखता तो राग-द्वेष कैसा...? वस्तुओं और व्यक्तियों पर पर आधारित सुख-दुःख तब बच्चों का खेल लगता है. मन एक निरंतर बहने वाली धारा में भीगता रहता है. इसके लिये ईश्वर से उसकी भक्ति ही मांगनी है, प्रेम का सूर्य जब हृदय में जगमगाता है तो भीतर का अंधकार  मिटने लगता है, तत्क्षण मिट जाता है. श्रुति, स्मृति व शास्त्र के द्वारा प्राप्त किया ज्ञान व्यवहार के लिये आवश्यक है पर नित्य ज्ञान स्वयं को जानना ही है. देह व मन से परे स्वयं का पल भर का अनुभव ही भीतर परिवर्तन लाता है. 

1 comment:

  1. प्रेम का सूर्य जब हृदय में जगमगाता है
    तो भीतर का अंधकार मिटने लगता है,
    ENERGETIC LINES. THANKS

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