हमारी उत्पत्ति आनंद से हुई है, हम आनंद में ही जीते हैं, उसी में स्थित हैं, उसी
को पाना हमारा लक्ष्य है. वह मस्ती, वह फक्कड़पन, वह अनुभूति जो ध्यान में होती है
जब आँखें खोलने का भी मन नहीं होता, एक रस का स्रोत भीतर प्रवाहित होता सा लगता
है, वही प्रेम है, वही सत्य है, जो अपना रूप कभी दिखाता है, कभी छिपा लेता है.
उसके साथ एक बार यदि सम्बन्ध जुड़ जाये तो वह कभी बिछड़ता नहीं क्योंकि वही सत् है.
संसार यदि मिल भी जाये तो वह छूटने वाला है क्योंकि वह असत् है, संसार परिवर्तनशील
है, यह उत्पन्न होता है फिर नष्ट होता है. यहाँ संयोग भी है और वियोग भी है. लेकिन
परम के साथ यदि एक बार संयोग हो गया तो कभी वियोग नहीं होता. वियोग प्रतीत होते
हुए भी वह वह मधुर पीड़ा का अहसास कराता है. वे अश्रु जो उसके विरह में बहते हैं
शीतल होते हैं. वह पूर्ण है और हम भी उसी पूर्णता की तलाश में हैं.
हमारी उत्पत्ति आनंद से हुई है, हम आनंद में ही जीते हैं,उसी को पाना हमारा लक्ष्य है.,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST...:चाय....
हमारी उत्पत्ति आनंद से हुई है, हम आनंद में ही जीते हैं, उसी में स्थित हैं,
ReplyDeleteअद्भुत भाव ....
धीरेन्द्र जी, रमाकांत जी, मनोज जी अभिनन्दन व आभार !
ReplyDeletesundar aalekh
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