मई २००३
हमारे कर्म मात्र हमारा ही उत्थान-पतन नहीं करते हैं वरन् वे हमारे आसपास के
वातावरण के उत्थान-पतन के प्रति जिम्मेदार हैं, हमारी संतति को भी वे प्रभावित
करते हैं. कर्म शुद्ध होंगे तो भविष्य ज्ञानमय होगा. मूल्यों के प्रति प्रतिबद्दता
होगी तो ही ज्ञान हमारा सहायक होगा, कोरा ज्ञान हमें कहीं नहीं ले जाता. हमारे कर्म ही हमारे आंतरिक भावों को प्रकट
करते हैं. मनसा-वाचा-कर्मणा जो एकरस है भीतर-बाहर एक सा उसे अपने कहे, किये या
सोचे पर एक क्षण के लिये भी पछताना नहीं पड़ता. सहज भाव से जो भी मार्ग में आये उसे
अपने विकास के लिये साधित कर लें तो जीवन में अर्थ की सुगन्धि भर जाती है.
सत्य वचन!
ReplyDeleteसत्य और सुन्दर ।
ReplyDeleteआपने सही कहा,,,,सटीक सत्य बात
ReplyDeleteRECENT POST...: दोहे,,,,
वाह ..बहुत सुंदर ..आभार.
ReplyDeleteआपका चिंतन सार्थक सत्य का मार्ग दर्शन करने वाला है.
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