जून २००३
जीवन जीना एक कला है और जीवन में अनुशासन रखना भी. प्रकृति के सारे कार्य अपने
निर्धारित समय पर सम्पन्न होते हैं, एक पल के लिये भी वह नहीं चूकती, लेकिन मानव
सदा आपने प्रमाद भरे मन के कारण चूक जाता है. ज्ञान ही उसका एक मात्र आधार है जिस
पर उसे अपने जीवन की इमारत को खड़ा करना है, जनक को ज्ञान हुआ तो वे विदेही कहलाये,
यह ज्ञान कि वह मरणधर्मा शरीर नहीं है, अमर ऊर्जा हैं, कि यह तन जो हर क्षण क्षय
की ओर बढ़ रहा है, सारी शक्ति और समय का हरण कर लेता है, इसे स्वस्थ रखने, सजाने,
संवारने, खिलाने-पिलाने में ही सारा समय नष्ट न करके आत्मा को पुष्ट बनाएँ. आत्मा
की पुष्टता हमारे मन पर निर्भर करती है, मन जो खाली हो, जगत के हित की बात सोचता
हो, प्रेम से परिपूर्ण हो. ऐसा मन हमें व्यर्थ के कार्यों से बचाता है, शक्ति का
अपव्यय नहीं होता. उस समय व शक्ति का उपयोग ही हम ध्यान में, सत्शास्त्रों के
अध्ययन में लगा सकते हैं. सुमिरन में लगा सकते हैं.
जीवन जीना एक कला है
ReplyDeleteजीवन के लिए अति आवश्यक भी है
जीवन में अनुशासन से रखना और जीवन जीना एक कला है,,,,,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुती,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
रमाकांत जी, व धीरेन्द्र जी स्वागत व आभार!
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने अनुशासन ज़रूरी है।
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