अनुकूलता व प्रतिकूलता का नाम ही सुख-दुःख है, जो निरंतर परिवर्तनशील है. अंतर्मन तक
यदि न सुख की शीतलता पहुँचे न दुःख का ताप, तो समता की स्थिति सिद्ध माननी चाहिए.
आत्मा सुख-दुःख से परे है यह मानने से ही काम नहीं चलेगा, और न जानने से ही, यदि
जानना केवल बुद्धि के स्तर पर हो, अनुभूति के स्तर पर जानना ही धर्म है. धर्म को
उपलब्ध हुए बिना दुखों का अंत नहीं होता. एक बार जब हम अपने अंतर्मन में निज
स्वभाव का अनुभव कर लेते हैं तो बुद्धि स्थिर हो जाती है, उस दीपक की तरह जिसे ओट
मिली है. जीवन तब सत्यं, शिवं, सुन्दरं की परिभाषा को सत्य सिद्ध करता है
अनुकूलता व प्रतिकूलता का नाम ही सुख-दुःख है,
ReplyDeleteजो निरंतर परिवर्तनशील है,,,,,,,,,
बहुत बढ़िया प्रस्तुती,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,.
सच कहा जानना तो बुद्धि तक ही सीमित है....अनुभव ही कसौटी है ।
ReplyDeleteअनुकूलता व प्रतिकूलता का नाम ही सुख-दुःख है, जो निरंतर परिवर्तनशील है.
ReplyDeleteजीवन का मूल समझाता तत्व ज्ञान
धरेंद्र जी, इमरान, रमाकांत जी व राजेश कुमारी जी, आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !
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