जून २००३
संतकवि तुलसीदास के प्रति मन कोटि-कोटि बार श्रद्धा से नत हो जाता है. ‘उत्तरकांड’
में कवि की अद्भुत लेखनी का प्रभाव दिखाई देता है. भक्ति और ज्ञान, सगुन और
निर्गुण के प्रति सारे संशयों को खोलकर रख देते हैं. ज्ञान के पथ पर चलना दुष्कर
है, उससे अहंकार भी उपजता है. और पतन भी शीघ्र होने की सम्भावना है. भक्ति का पथ
सहज है, हृदय में ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम ही भक्ति है, भक्ति यदि दृढ़ हो तो
ज्ञान भी प्रकट होता है. ईश्वर और हमारे सम्बन्ध का ज्ञान, परमात्मा और आत्मा की एकता
व भिन्नता का ज्ञान. परमात्मा सभी के भीतर है, आत्मा अपने शरीर के प्रति ही सजग
है. परमात्मा विभु है, आत्मा अणु है. हम परमात्मा के नित्य सेवक हैं पर ऐसे निकट
के जो मित्र भी हो सकते हैं. जब हम उसके प्रति पूर्ण समर्पित होते हैं, कोई दुराव
नहीं रखते, उसके सिवा कुछ नहीं चाहते, तो परमात्मा हमें अपना सखा ही मानता है.
किन्तु हम जो सदा स्वयं को आगे रखने की चेष्टा करते हैं, अपनी सांसारिक बुद्धि को
ही सही मानते हैं. जगत को भगवद् बुद्धि से देखने का अभ्यास नहीं करते बल्कि दोष
दृष्टि से देखते हैं. यही हमें परमात्मा से दूर करता है.
अलग अलग रास्ते है ये भी।
ReplyDeleteजगत को भगवद् बुद्धि से देखने का अभ्यास नहीं करते बल्कि दोष दृष्टि से देखते हैं. यही हमें परमात्मा से दूर करता है.
ReplyDeleteसार्थकता लिए सटीक लेखन ... आभार
हृदय में ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम ही भक्ति है, भक्ति यदि दृढ़ हो तो ज्ञान भी प्रकट होता है.
ReplyDeleteजीवन का सत्य
ईश्वर और हमारे सम्बन्ध का ज्ञान, परमात्मा और आत्मा की एकता व भिन्नता का ज्ञान. परमात्मा सभी के भीतर है,,,,,,
ReplyDeleteसटीक लेखन के लिए आभार ,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
दृष्टि सही होनी ही चाहिए ..
ReplyDeleteएक नजर समग्र गत्यात्मक ज्योतिष पर भी डालें
ham jab chhote the in sabhi maha purushon ki jayantiyan manayee jati thi...ab to gahe bagahe aise yad aa jate hai...achchi post ke liye abhar..
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