साधक को किसी भी बात पर परेशानी होती ही नहीं, आनंद का स्रोत यदि भीतर मिल गया हो
तो छोटी-छोटी बातों का असर नहीं होता, हम किसी महान उद्देश्य को पाने के लिये यहाँ
भेजे गए हैं. वह रहस्य हमारे भीतर है, उसके ही निकट हमें जाना है, जीवन के हर पल
का उपयोग उस परम सत्य की खोज में हो सके तो ही जीवन सफल है. हमारा रोजमर्रा का
कार्य भी उसी ओर इंगित करे, हमारे विचार, हमारा आचरण भी वही दर्शाये, हम जो भी
अनुभव करें, सच्चे मन से करें, सजग होकर करें,
विवेक को जगाएं. मिथ्या अहं को त्याग कर जीवन को एक विराट परिदृश्य में
देखें. हम सभी श्वास के द्वारा एक दूसरे से जुड़े हैं, हमारी चेतना परम चेतना का ही
अंश है. हम अपरिमित शक्ति के स्वामी हैं !
बहुत सुन्दर ...एवम ज्ञानवर्धक ....!!
ReplyDeleteमिथ्या अहं को त्याग कर जीवन को एक विराट परिदृश्य में देखें.
ReplyDeleteमा वद मिथ्या मा भव मानी
और यह रहस्य ही सत्य है
ReplyDeleteसत्य वचन...
Deleteयही है, अंतर में आनन्द है तो हर ओर आनन्द है!
ReplyDeleteअनुराग जी, आपने बहुत सही कहा है, हम आनंदित हैं तो सारा जगत आनन्दित प्रतीत होता है...
Deleteप्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर पर" आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअनुपमा जी, रमाकांत जी, व प्रेम सरोवर जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसुन्दर और गहन विचार।
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