‘कोहम्’ का जवाब जब मिल जाये तो परमशांति का अनुभव होता है. निरंतर अभ्यास ही हमें इस
पथ पर पहुँचा सकता है. जब संकल्प दृढ़ हो और मन में तितिक्षा हो. आत्मा में जो भी
शक्ति है वह परमात्मा की दी हुई है. इसका अनुभव हमें करना है. अर्जुन का सारथि
हमारा भी सारथि है. वह हमें उस पथ पर ले जाने को उत्सुक है. हमारी यात्रा में वह
सदा हमारे साथ है, मार्ग दर्शक है, वही लक्ष्य भी है. परमशांति भी वही है, अर्थात
हमारे मन की ऐसी स्थिरता जो बाह्य परिस्थितियों पर निर्भर नहीं हो. निर्विकल्प
अवस्था का अनुभव हो जाने के बाद ही बोध होगा और एक बार बोध हो जाने के बाद संशय का
कोई स्थान नहीं रह जाता. न स्वयं पर, न पथ और न पथ का ज्ञान कराने वाले पर. निरंतर
प्रयास करने ही हमारे हाथ में है, शेष प्रभु कृपा. वही हमें इस धरा पर लाया है,
उसका हमारी प्रगति में पूरा हाथ है, वह हमें आगे बढ़ते देखना चाहता है, वह हमारी
प्रतीक्षा में है, बल्कि वह भी हमारी ओर कदम बढ़ा चुका है. देर तो हमारी तरफ से ही
होती है.
अर्जुन का सारथि हमारा भी सारथि है. वह हमें उस पथ पर ले जाने को उत्सुक है. हमारी यात्रा में वह सदा हमारे साथ है, मार्ग दर्शक है, वही लक्ष्य भी है. परमशांति भी वही है,
ReplyDeleteभाव पूर्ण पक्ष सुन्दर
रमाकांत जी, आभार !
Deleteकेवल जवाब मात्र से ही परमशान्ति का अनुभव नहीं हो सकता| इसके लिए एक मार्गदर्शक की भी परम आवश्यकता हरदम रहती ही है | मार्गदर्शक इस लिए की जगह जगह आने वाले व्यवधानों से वेह हमें पहले से ही अवगत करा दे अन्त्य्था मात्र एक वाव्त्धान भी मार्ग की रूकावट बन सकता है | --------- आप सब में व्याप्त परम सत्ता को मेरा हार्दिक प्रणाम
ReplyDeleteसुन्दर और ज्ञानमय आलेख।
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही कहा है...स्वागत व आभार!
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