जून २००३
सदगुरु बादल प्रेम के हम पर बरसे आज, अंतर भीजी आत्मा हरि भई वह आज !
उसे पुकारो तो वह एक
क्षण की भी देर नहीं लगाता, भीतर बाहर हर जगह उसी का दीदार होता है, वह हमारे भीतर
विद्यमान है, उसी की ज्योति से सारा विश्व प्रकाशित है, उसकी ही अध्यक्षता में परा
व अपरा प्रकृति अपना कार्य कर रही है. वह हमें हर क्षण अपने निकट आने का आमन्त्रण
देता है. उसने हमें अपने समकक्ष बनाया है. छोटे-छोटे सुखों के प्रलोभन, पुराने
संस्कार हमें अपने पथ से विचलित करते हैं, पर निरंतर साधना से हम उसकी समीपता पा
लेते हैं. हमारा व्यक्तिगत अनुभव वास्तव में हमारा नहीं है, महाचित्त का विशाल
अनुभव है, हमारी आत्मा विशिष्ट नहीं है सभी के भीतर वही आत्मा है. सभी को अनुभव
समान नहीं होते क्योंकि चित्त भिन्न भिन्न हैं.
सदगुरु बादल प्रेम के हम पर बरसे आज,
ReplyDeleteअंतर भीजी आत्मा हरि भई वह आज !
अंतस को दर्शाती भावनाएं ......
सभी को अनुभव समान नहीं होते क्योंकि चित्त भिन्न भिन्न हैं.
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने ... आभार
सदगुरु बादल प्रेम के हम पर बरसे आज,
ReplyDeleteअंतर भीजी आत्मा हरि भई वह आज,,,,,,
सबकी भावनाए अलग२ होती है,,,,,,
RECENT POST,,,इन्तजार,,,
रमाकांत जी, सदा जी, व धीरेन्द्र जी..आप सभी का हार्दिक स्वागत व आभार !
ReplyDeleteगहन और शानदार।
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