मई २००३
मन की शुद्धता उसी के पास है, जो हरेक के भीतर उसी चैतन्य का दर्शन करता है, जो
सुख-दुःख में सम रहने की कला जानता है, जो धैर्यवान है, जो मिथ्या अहंकार का पोषण
नहीं करता. जो सत्य का पक्षधर है, जो प्रकाश की खोज करता है वह हृदय पावन होने
लगता है. जैसे कीमती पदार्थ रखने के लिये कीमती व सुरक्षित स्थान भी चाहिए, वैसे
ही ज्ञान के लिये भी पात्रता चाहिए. ज्ञान होने पर ही हृदय में प्रेम का उदय होता
है, प्रेम अपने आप में साधन भी है और साध्य भी, परम के प्रति प्रेम यदि दृढ़ है तो
साधक को और कुछ प्राप्य नहीं रह जाता. ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम ही साधना का
लक्ष्य है. प्रेम होने पर सारे सदगुण अपने आप प्रसाद रूप में मिल जाते हैं. तब कोई
उहापोह नहीं रहती, सारा का सारा विषाद न जाने कहाँ चला जाता है.
प्रेम कीचड़ में भी कमल होता है
ReplyDeleteजैसे कीमती पदार्थ रखने के लिये कीमती व सुरक्षित स्थान भी चाहिए, वैसे ही ज्ञान के लिये भी पात्रता चाहिए.बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद बात कही है अनीता जी बहुत सुन्दर ज्ञानप्रद बातें बताती हैं आपकी पोस्ट आभार
ReplyDeleteज्ञानवर्धक आलेख।
ReplyDeleteप्रेम होने पर सारे सदगुण अपने आप प्रसाद रूप में मिल जाते हैं.बिल्कुल सही कहा आपने ... आभार
ReplyDeletesach kaha aapne ,jab prem bheetar panpata hai to sara vishad apne aap hi jane kahan chala jata hai
ReplyDeleteज्ञान वर्धक बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
प्रेम होने पर सारे सदगुण अपने आप प्रसाद रूप में मिल जाते हैं. तब कोई उहापोह नहीं रहती, सारा का सारा विषाद न जाने कहाँ चला जाता है.
ReplyDeleteसुन्दर मनोहर दर्पण विचारों का .
सुन्दर और मनोहर दर्पण विचारों का आपने परोसा है .शुक्रिया .
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