Tuesday, July 10, 2012

प्रेम पनपता है जब भीतर


मई २००३ 
मन की शुद्धता उसी के पास है, जो हरेक के भीतर उसी चैतन्य का दर्शन करता है, जो सुख-दुःख में सम रहने की कला जानता है, जो धैर्यवान है, जो मिथ्या अहंकार का पोषण नहीं करता. जो सत्य का पक्षधर है, जो प्रकाश की खोज करता है वह हृदय पावन होने लगता है. जैसे कीमती पदार्थ रखने के लिये कीमती व सुरक्षित स्थान भी चाहिए, वैसे ही ज्ञान के लिये भी पात्रता चाहिए. ज्ञान होने पर ही हृदय में प्रेम का उदय होता है, प्रेम अपने आप में साधन भी है और साध्य भी, परम के प्रति प्रेम यदि दृढ़ है तो साधक को और कुछ प्राप्य नहीं रह जाता. ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम ही साधना का लक्ष्य है. प्रेम होने पर सारे सदगुण अपने आप प्रसाद रूप में मिल जाते हैं. तब कोई उहापोह नहीं रहती, सारा का सारा विषाद न जाने कहाँ चला जाता है.  

8 comments:

  1. प्रेम कीचड़ में भी कमल होता है

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  2. जैसे कीमती पदार्थ रखने के लिये कीमती व सुरक्षित स्थान भी चाहिए, वैसे ही ज्ञान के लिये भी पात्रता चाहिए.बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद बात कही है अनीता जी बहुत सुन्दर ज्ञानप्रद बातें बताती हैं आपकी पोस्ट आभार

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  3. ज्ञानवर्धक आलेख।

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  4. प्रेम होने पर सारे सदगुण अपने आप प्रसाद रूप में मिल जाते हैं.बिल्‍कुल सही कहा आपने ... आभार

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  5. sach kaha aapne ,jab prem bheetar panpata hai to sara vishad apne aap hi jane kahan chala jata hai

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  6. प्रेम होने पर सारे सदगुण अपने आप प्रसाद रूप में मिल जाते हैं. तब कोई उहापोह नहीं रहती, सारा का सारा विषाद न जाने कहाँ चला जाता है.
    सुन्दर मनोहर दर्पण विचारों का .

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  7. सुन्दर और मनोहर दर्पण विचारों का आपने परोसा है .शुक्रिया .

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