जून २००३
आदि शंकराचार्य ने प्रार्थना की थी कि उन्हें मोक्ष भी नहीं चाहिए, क्योंकि
वे भक्ति को मोक्ष से बढ़कर मानते थे. भक्ति हमें जीते जी मोक्ष प्रदान करती है.
भक्ति रूपी सूर्य जब भीतर के आकाश में खिलता है तो विकार अंधकार दूर होता है,
ज्ञान कमल खिल जाता है. लेकिन यह सूर्य सदा खिला रहे पुनः हम मोह निशा में न सो जाएं
इसके लिए सतत् प्रयास करना होता है. इस प्रयास में हम अकेले नहीं होते,
सत्शास्त्रों का सँग, सदगुरु का प्रेम और सबसे बढ़कर हमारी आत्मा में स्थित
परमात्मा की सद्प्रेरणा, सभी हमारे साथ हैं. हमारे भीतर अनंत प्रेम है वही रूप
बदल-बदल कर काम, मोह तथा आसक्ति का रूप ले लेता है. जैसे शुद्ध आत्मा ही विकारी बुद्धि,
चित्त व अहंकार का रूप ले लेती है. आकाश अपने आप में शुद्ध है अनंत है पर उस पर
बादल छा जाते हैं तो उसका निज स्वरूप स्पष्ट नहीं होता. ऐसे ही प्रेम को हमें यदि
उसके शुद्ध स्वरूप में जानना है तो काम, मोह और आसक्ति को मोड़ देना होगा, कामना भी
उसी की, मोह भी उसी का, आसक्ति भी उसी में तो ये सभी प्रेम में बदल जाती हैं.
गहन विचार।
ReplyDeleteपरिचय करवाने का आभार ।
ReplyDeleteभक्ति हमें जीते जी मोक्ष प्रदान करती है.
ReplyDeleteसत्य कथन
भक्ति हमें जीते जी मोक्ष प्रदान करती है.,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,इन्तजार,,,
आदि गुरु शंकराचार्य के दिखाए ज्ञानमार्ग पर चलकर मोक्ष संभव है।
ReplyDeleteमनोज जी, आपने बिल्कुल सही कहा है, आभार !
Deleteइमरान, रमाकांत, धीरेन्द्र तथा राजेश जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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