हमारे भीतर अनंत सम्भावनाएं छुपी हैं. हम परमात्मा के अंश होने के कारण उसकी
अपरिमित शक्ति के हकदार हैं. साधना उसी शक्ति को प्रकट करती है. आनंद, सहजता,
प्रेम, वर्तमान में रहने का गुण, कालातीत होना, उत्साह आदि गुण हमें इस पथ पर सहायक
हैं. अहंकार सबसे बड़ी बाधा और विनम्रता सबसे पहली आवश्यकता है. हमारे पास जो कुछ भी
है वह उसी का है. अभी वह हमें अपने से पृथक दिखाई पड़ता है, हमें उसकी चाह होती है.
वही सब कुछ है यह जानते हुए भी अपने गुणों व उपलब्धियों पर चाहे वे कितनी भी नगण्य
क्यों न हों, अभिमान कर बैठते हैं. ध्यान में भी वही है जीवन में भी वही है. हम
बीच में आये कहाँ से, वास्तव में हम खुद को ही खोजने में लगे हैं और जब हम हैं ही
नहीं तो खोजें किसे ? कबीर ने ऐसे ही कभी कहा होगा- घडे में पानी, पानी में
घड़ा.... वह हममें है हम उसमें हैं, फिर कौन किसे मिले और कौन किससे मान करे ....?
तू है मुझमे समाया मैं हूँ तुझमे समाया.....सुन्दर आलेख।
ReplyDeleteबहुत सच कहा है..हम उसे अपने अन्दर ढूंढने की बजाय बाहर ढूंढते फिरते हैं...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDeleteआभार अनीता जी ...
हम परमात्मा के अंश होने के कारण उसकी अपरिमित शक्ति के हकदार हैं. साधना उसी शक्ति को प्रकट करती है.
ReplyDeleteVERY NICE
अकसर हम उसे बाहर खोजते हैं जब कि वह हमारे अंदर होता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव अनीता जी...
ReplyDeleteआभार
अनु
इमरान,मनोजजी, अनु जी, अनुपमा जी, रमाकांत जी व कैलाश जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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