Tuesday, June 11, 2019

कोई जान रहा है सब कुछ



बगीचे से कोकिल की आवाज निरंतर आ रही है. खिड़की से बेला के फूलों की गंध आकर सहज ही नासापुटों को आकर्षित करती है. आँखें कम्प्यूटर की स्क्रीन पर लगी हैं तो कभी की बोर्ड पर. अभी भोजन का समय नहीं हुआ है और कोई सम्मुख नहीं है, इसलिए मुख बंद है. पंखे की हवा का स्पर्श त्वचा को शीतलता प्रदान कर रहा है. पंच इन्द्रियों के माध्यम से मन ही तो प्रकट हो रहा है. मन ही सुन, सूँघ, देख, व महसूस कर रहा है. इसके साथ-साथ यह लेखन का कार्य भी मन के द्वारा ही हो रहा है, जिसने तय किया है कि सुबह का यह समय लेखन के लिए देना है. लिखने में कोई त्रुटी होने पर बुद्धि इसमें सुधार करवा देती है. किंतु मन के पीछे बैठकर भी कोई यह सब देख रहा है, वह मौन है, पर सब जानता है, वह उस बुजुर्ग की तरह है जो घर की बैठक में रहते हुए भी घर की  सारी हलचल को भांपता रहता है और सदा सबके लिए शुभ आशीषें देता रहता है. उस साक्षी को मन नहीं जान सकता, बुद्धि उसकी तरफ इशारा कर सकती है, कुछ देर शांत होकर उसमें खो सकती है. तब वही रहता है और रहती है एक सरस शांति. उस शांति का अनुभव करके बुद्धि जब लौट आती है तो पहले से ज्यादा सशक्त हो जाती है. ध्यान का यही परिणाम है.

2 comments:

  1. बहुत बहुत आभार !

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  2. अति सुंदर शब्दों में आपने आत्मतत्व का परिचय दिया है, स्वागत व आभार !

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