जीवन की भव्यता और दिव्यता को
समझना हो तो योग ही एकमात्र साधन है. योग ही हमें अपने पथ पर अचल रखता है. आत्मा
को अल्प से सुख नहीं मिल सकता, वह अनंत से ही संतुष्ट हो सकती है. संस्कारों को
दग्ध बीज किये बिना अनंत में टिका नहीं जा सकता. संस्कारों को दग्ध करने के लिए योग
को अपनाना है. योगी का अंतिम गन्तव्य सन्यास अर्थात त्याग है. जो विवेक और वैराग्य
का महत्व जान ले वही सन्यासी है. जो अपने भीतर के दोषों का, दुर्बलताओं का त्याग
कर सकता है वही आत्मबोध प्राप्त कर सकता है. भीतर द्वंद्व हैं, लोभ है, वासना और
कामना है. जो आत्मा को जंजीरों से कैद रखती है. योग है इन सबसे मुक्ति का मार्ग !
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23 -06-2019) को "आप अच्छे हो" (चर्चा अंक- 3375) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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