हमारे जीवन का हर पल कितना कीमती है, इसका अनुभव हमें नहीं हो पाता. जीवन किसी भी
क्षण जा सकता है, खो सकता है, जब तक जीवन है तभी तक हम सत्य को उपलब्ध कर सकते
हैं. हम अपने जीवन से संतुष्ट हैं या नहीं इसका उत्तर ही हमें यह बता देगा कि हम
सत्य की राह पर हैं या नहीं. हमारा मन चेतना के उच्च स्तर का अनुभव करके ही तृप्त
होता है. जब तक हम तुच्छ से सुख लेते रहेंगे भीतर तृप्ति का अनुभव नहीं कर पायेंगे.
चेतना विकसित होती है जब उसकी शक्तियों का पूर्ण उपयोग हो सके. जितना-जितना हम
अपनी शक्तियों का उपयोग करते हैं, अस्तित्त्व हमें भरता जाता है. यह जगत का नियम
है कि यहाँ खाली स्थान तत्क्षण भर दिया जाता है, पृथ्वी के गड्ढे मिट्टी से और
निर्वात हवा से अपने आप भर जाते हैं. चेतना स्वयं को देह व मन के द्वारा व्यक्त
करती है. प्रेम, आनंद, शांति, शक्ति, सुख, ज्ञान और पवित्रता उसके लक्षण हैं. जब
हम स्वयं के द्वारा इनको प्रकट होने देते हैं तो यह स्वतः और पुष्ट होती जाती है.
बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteबेहतरीन दी जी |सही और सटीक कहा आप ने
ReplyDeleteप्रणाम