जीवन शब्द को यदि दो शब्दों
में तोड़ें तो मिलता है जीव और न, ऐसे मन को दो वर्णों में तोड़ने पर मिलता है म और
न, जीव का अर्थ है व्यक्तिगत आत्मा, म का अर्थ भी वही है 'मैं' यानि एक व्यक्ति,
जब दोनों 'न' हो जाते हैं तब समष्टिगत के साथ योग घटता है. इसका अर्थ हुआ जब जीव न
बचे तब असली जीवन है और जब अहंकार न रहे तब असली मन है. योग का लक्ष्य यही है.
देह, प्राण, मन, बुद्धि, स्मृति और अहंकार को साधते हुए इन सबके पार ले जाता है
योग. इसका आरम्भिक आसन है, लेकिन उससे भी पूर्व पंच यमों और नियमों का ज्ञान भी
आवश्यक है. सत्य का पालन, ज्यादा संग्रह न करना, मन की समता, किसी अन्य की संपदा का
लोभ न होना, शुचिता, संतोष आदि इनमें आते हैं. इसके बाद प्राणों का निग्रह
प्राणायाम के द्वारा किया जाता है. देह स्वस्थ रहे, मन शांत रहे, बुद्धि में
स्पष्टता हो तभी योग जीवन में प्रस्फुटित होता है. इसके बाद व्यक्ति पहले जैसा संकुचित
नहीं रह जाता, वह जगत के साथ एक मैत्री का अनुभव सहज ही करता है.
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/06/2019 की बुलेटिन, " अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2019 - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
Deleteवाह ! बहुत ही अच्छी जानकारी के साथ सुन्दर लेख
ReplyDeleteसादर
स्वागत व आभार अनीता जी !
Deleteअच्छी जानकारी!
ReplyDeleteस्वागत व आभार वाणी जी !
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