Thursday, June 27, 2019

स्वयं को जान लिया है जिसने



संत और शास्त्र कहते हैं, 'स्वयं को जानो', इसके पीछे क्या कारण है ? अभी हम स्वयं को देह मानते हैं, इस कारण जरा और मृत्यु का भय कभी छूटता ही नहीं. देह वृद्ध होगी और एक न एक दिन उसे त्यागना होगा. यदि कोई स्वयं को प्राण ऊर्जा मानता है, तो उसे भूख व प्यास सदा सताते रहेंगे. समय पर या पसंद का भोजन न मिले तो कितने लोग संतुलन ही खो देते हैं. भोजन के प्रति आसक्ति का कारण है प्राणमय कोष में निवास. कोई-कोई इससे आगे बढ़ जाते हैं और मन में रहने लगते हैं, कलाकार, कवि, लेखक उनका मन ही उनका संसार होता है. पर मन कभी शोक और मोह से मुक्त होता ही नहीं. अतीत का शोक और भविष्य के प्रति मोह उन्हें चैन से कहाँ रहने देता है. जब हम स्वयं को शुद्ध चेतन स्वरूप में जान जाते हैं, जरा-मृत्यु, भूख-प्यास, शोक-मोह सभी से परे जा सकते हैं. अपने भीतर एक शांत, आनन्दमयी स्थिति को अखंड रूप से अनुभव कर सकते हैं, तब भी देह अशक्त होगी, इसका अंत भी होगा पर इसका भय नहीं होगा. भूख लगने पर भोजन भी करेंगे और प्यास लगने पर जल भी ग्रहण करेंगे पर इनके प्रति आसक्ति नहीं होगी. समुचित आहार स्वस्थ रहने में भी सहायक होगा. विषाद का सदा के लिए अंत हो जायेगा और मोह की जगह निस्वार्थ प्रेम सहज ही प्रकट होगा. इसीलिए शास्त्र कहते हैं, स्वयं को जानना खुद के लिए ही सच्चा सौदा है.

7 comments:

  1. बहुत स्पष्ट व्याख्या ,सब समझ मे आ गया।

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    1. स्वागत व आभार दीदी !

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  2. बहुत बहुत आभार !

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    1. स्वागत व आभार ओंकार जी !

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  4. स्वयं को चैतन्य रूप में जान पाना ही सबसे कठिन है . और उसे पाने के उपाय भी अज्ञान के अन्धकार में हैं . उनकी जानकारी होती तब उस दिशा में कदम बढ़ते .

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  5. सुंदर आध्यात्मिक चिंतन ।

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