पर्यावरण संरक्षण से तात्पर्य है
जो आवरण हमें हमारे चारों ओर से घेरे हुए है, उसका बचाव. कोई सोचता है कि हवा,
पानी और जल जो हमसे बाहर हैं उनका बचाव. किंतु इस आवरण का आरंभ हमारी देह की सीमा आरंभ
होते ही हो जाता है, यानि भीतर से ही. हमारा शरीर साठ प्रतिशत जल तत्व से बना है,
अशुद्ध जल भीतर जाते ही भीतर का जलीय वातावरण बिगड़ जाता है. देह के कण-कण में वायु
तत्व है, जो श्वास हम ग्रहण करते हैं यदि वह अशुद्ध है तो भीतर स्वच्छता की कामना
रखना व्यर्थ है. इसी तरह पृथ्वी यानि भोजन का जो अंश हम रोज ग्रहण करते हैं यदि रासानियक
रूप से प्रदूषित है तो देह के अंग स्वस्थ नहीं रह सकते. मन बनता है भोजन के
सूक्ष्म अंश से, प्राण बनता है वायु के सूक्ष्म अंश से, यदि मन व प्राण ही साफ-सुथरे
नहीं हैं तो रोग को हम स्वयं ही आमन्त्रण दे रहे हैं. इसका अर्थ हुआ पेड़ लगाना,
नदियों को स्वच्छ रखना, रसायन मुक्त खेती करना, आज यह विश्व के लिए या देश के लिए
जरूरी नहीं है बल्कि हमारे खुद के अस्तित्त्व की रक्षा के लिए आवश्यक हो गया है. जीवन
का सम्मान यदि हमें करना है तो अपने परिवेश की स्वच्छता के प्रति सजग होना हमारी
पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 6 जून 2019 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार !
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/06/2019 की बुलेटिन, " 5 जून - विश्व पर्यावरण दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
Deleteहर व्यक्ति अपने स्तर पर थोड़ा थोड़ा सा भी काम करे तो बहुत कुछ हो सकता है। बूँद बूँद से घड़ा भर जाता है।
ReplyDeleteआप बिलकुल सही कह रही हैं मीना जी, अपने आसपास का वातावरण शुद्ध रखकर हमें अपने स्तर पर ही इसकी शुरुआत करनी होगी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-06-2019) को "हमारा परिवेश" (चर्चा अंक- 3359) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार !
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