Friday, June 14, 2019

समता एक साधना ही है



किसी भी व्यक्ति, घटना अथवा वस्तु को गलत कहते ही हम अपने भीतर द्वेष भाव उत्पन्न कर लेते हैं. जिसका फल दुःख के रूप में हमें ही प्राप्त होता है. कोई भी व्यक्ति जैसा है वैसा होने के लिए उसे न जाने कितने कर्मों का प्रवाह ले आया है. इसमें वह स्वाधीन नहीं है. हम स्वाधीन हैं अपने अंतर की समता बनाये रखने में, क्योंकि वही आत्मा में रहना है. हम तभी भूल जाते हैं जब अहंकार वश स्वयं को कर्त्ता मानते हैं. अतीत का भय हमें तभी सताता है जब भविष्य में हम कुछ पाना चाहते हैं. वर्तमान का क्षण निर्दोष है जिसमें न कोई भय है न पश्चाताप, क्योंकि अतीत में जो हुआ वह उन क्षणों की उपज था, भविष्य में जो होगा वह वर्तमान के कार्यों का परिणाम होगा. वर्तमान में हम नये कर्म नहीं बाँध रहे क्योंकि समता में रहना आ गया है, तो भविष्य सुधरने ही वाला है.

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