हमारे आस-पास जो भी
परिस्थितियाँ प्रकृति के द्वारा रचित हैं, वे उन्हीं कारणों के परिणाम स्वरूप हमें
मिली हैं, जिनके बीज हमने कभी डाले थे. जैसे कोई छात्र यदि पढ़ाई नहीं करता और फेल
हो जाता है तो यह उसके ही कर्म का फल है. अब उसे दुखी होने या शिकायत करने का क्या
अधिकार है. इस वक्त यदि वह दुखी होकर अपना स्वास्थ्य खराब करेगा या जीवन ही समाप्त
कर लेगा तो इस नये कर्म का परिणाम भविष्य में और दुःख के रूप में उसे मिलेगा. अज्ञानवश
स्वयं को कर्त्ता मानकर हम भविष्य के लिए कारण रूप में बीज डालते रहते हैं. जब फल
हमारी इच्छा के विपरीत आता है तो उसे स्वीकारते भी नहीं. आत्मज्ञान होने के बाद जब
कोई स्वयं को कर्त्ता मानना छोड़ देता है, तब भोक्ता भी नहीं रहता. मन, बुद्धि व
देह द्वारा जो भी कर्म पहले हुए हैं, उन्हीं का परिणाम मन, बुद्धि व देह को मिल
रहा है. आत्मा सदा अलिप्त है, यह ज्ञान ही हमें मुक्त करता है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन रक्तदान करके बनें महादानी : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
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