जून का महीना आते ही 'योग
दिवस' की याद आ जाती है. 'इक्कीस जून' को ही 'योग दिवस' के रूप में क्यों चुना गया
होगा, सम्भवतः इसलिए कि इस दिन भोर जल्दी होती है और शाम देर से होती है, वर्ष का
सबसे दीर्घ दिन है इक्कीस जून. योग भी हमारे जीवन को कई तरह से दीर्घ बनाता है. योग
एक जीवन पद्धति है जो शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, बौद्धिक, और आध्यात्मिक रूप से
मानव जीवन को समृद्ध करती है. योग का एक अर्थ है जोड़ना, इसका साधक पहले खुद से
जुड़ता है, फिर समष्टि से. आसन करने से देह व श्वास जुड़ते हैं, प्राणायाम करने से
देह, श्वास व मन जुड़ते हैं, ध्यान से देह, श्वास, मन, बुद्धि तथा चेतना जुड़ते हैं.
योग का एक अर्थ समाधि भी है, जिसमें टिकने से साधक पूरे अस्तित्त्व से जुड़ जाता
है, उसके लिए कोई पराया नहीं रहता. यदि कोई समाधि तक न भी पहुँचे तब भी स्वयं से जुड़ना
एक असीम आनंद की उपलब्धि कराता है. निय्मिओत और सही ढंग से योग करने वाला व्यक्ति
सहज ही प्रसन्न रहना सीख जाता है, उसके जीवन में अनुशासन आ जाता है. एक साथ योग
करने से समूह भावना का जागरण होता है. शरीर बिना दवाओं के स्वस्थ रहता है. मन बिना
मनोरंजन के शांत रहता है. बुद्धि तीव्र होती है और स्वतः ही उसकी दिनचर्या सात्विक
होने लगती है. आज की भौतिकतावादी जीवन शैली के कितने दुष्प्रभाव हमें देखने को मिल
रहे हैं, इस सबसे यदि आने वाली पीढ़ी को दूर रखना है तो उन्हें बचपन से ही योग
सिखाना होगा.
बहुत सुंदर और सार्थक लेख लिखा आपने 👌
ReplyDeleteस्वागत व आभार अनुराधा जी !
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जागना होगा, जिंदा बने रहने के लिए : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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