Tuesday, June 11, 2019

सृष्टि स्वयं से निर्मित होती



हम सबने सुना है, 'जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि' इसका एक अर्थ तो यह है कि जगत को हम जिस नजरिये से देखते हैं, जगत हमें वैसा ही नजर आता है. यदि एक डाक्टर की नजर से देखें तो लोग  रोगी या निरोगी दिखेंगे. अध्यापक की नजर से बुद्धू या होशियार. संत की नजर से देखें तो उसे सभी परमात्मा स्वरूप ही दिखेंगे. धन की दृष्टि से देखें तो अमीर या गरीब. कवि या गायक की दृष्टि से देखें तो उसे हर कहीं श्रोता ही नजर आयेंगे. लेकिन इस बात का एक और अर्थ भी है, हम स्वयं को और जगत को जैसा देखना चाहते हैं, अपने इर्द-गिर्द का वातावरण जैसा देखना चाहते हैं, वैसा ही दृष्टिकोण हमें अपनाना होगा. अपने विचारों और भावों का सृजन उसके अनुकूल ही करना होगा. यह सूक्ति हमें पूर्णरूप से आत्मनिर्भर होना सिखाती है. इसके अनुसार हर कोई जहाँ विचरता है, उस सृष्टि का निर्माण स्वयं ही करता है. एक ही बगीचे में भिन्न-भिन्न लोग भिन्न उद्देश्यों के लिए आते हैं. वहाँ के सौन्दर्य का दर्शन भी वे अपनी क्षमता के अनुसार ही करते हैं. परमात्मा की कैसी अद्भुत महिमा है, वह किसी के लिए बाल-गोपाल बन जाता है, तो किसी का पिता, माता भी वही है और मित्र भी. एक तरह से यह जगत उस परमात्मा की निरंतर चलती हुई कथा ही तो है. इसीलिए तो कवि कहते हैं, हरि अनंत, हरि कथा अनंता..  

2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जाँबाज मनोज तलवार को सादर नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  2. बिलकुल सही कहा ये हमारा ही दृष्टिकोण हैं जो हमें दुनियां को सही और गलत दिखता हैं |

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