वर्तमान युग में मानसिक अवसाद और तनाव के मामले बहुत बढ़ रहे हैं। यदि गहराई से देखें तो मन के सारे तनाव का मूल स्रोत व्यक्ति का असंतोष है। एक व्यक्ति सदा कुछ न कुछ और बनने की कोशिश करता रहता है। वह स्वयं जैसा है उसे स्वीकार नहीं करता, इसी कारण वह दूसरे के अस्तित्व को भी नकारता है।उसका मन सदा किसी आदर्श स्थिति को पाने की कल्पना करता है। इसलिए तनाव सदा इस बात के कारण होता है कि वास्तव में वह क्या है और क्या बनना चाहता है।व्यक्ति के पास जो आज है, वह उससे क़तई खुश नहीं है और वह पाना चाहता है, जो नहीं है। मन का स्वभाव ही द्वंद्वात्मक है, मन स्वयं का विरोधी है।किसी भी बिंदु पर अपने स्वभाव के कारण मन एकमत नहीं होता। यह हमेशा बंटा हुआ होता है। अगर व्यक्ति मन की बात मानकर एक काम करता है तो मन का दूसरा हिस्सा कहता है, यह काम सही नहीं था। अगर वह इस हिस्से की बात सुने, तो दूसरा हिस्सा कहता है, यह अस्थिरता ठीक नहीं है। मन न इस तरफ रहने देता है, न ही उस तरफ। व्यक्ति अपने भीतर सदा एक सवाल का सामना करता है, और उसकी सारी शक्ति अपने भीतर के इस तनाव से स्वयं को बचाने में ही खर्च होती रहती है ।इस तनाव से बचाने का उपाय है, व्यक्ति स्वयं को जैसा वह है, पूर्ण रूप से स्वीकार करे। जब कोई ख़ुद को स्वीकारता है तभी दूसरों को भी, जैसे वे हैं, स्वीकार सकता है। इससे उसके भीतर बहुत सी ऊर्जा बच जाती है, जिसका उपयोग वह अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए कर सकता है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 28 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
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