२४ मई २०१८
यदि हम नजर उठा कर देखें तो प्रतिपल हमारे चारों ओर सौन्दर्य
का एक अद्भुत खेल रचा जा रह है. भोर में गगन के बदलते रंग, आकाश के अनंत विस्तार
पर रंगीन बदलियाँ, उड़ते हुए पंछी और शीतल पवन किसी अनजान कलाकार की स्मृति दिला
देती है. बसंत के मौसम में वृक्षों पर लदे हुए रंगीन पुष्प और बगीचों में सुगंध की
बरसात उस अदृश्य शक्तिमान की खबर देती हुई सी लगती है. जैसे चित्र को देखकर उसके
चित्रकार के प्रति मन प्रशंसा से भर जाता है बिलकुल उसी तरह, दृश्य को देखकर हमें
उसके पीछे छिपे अज्ञात का स्मरण हो आये, इसी में दृश्य की सार्थकता है. भंवरों और
पक्षियों के गान को सुनकर भीतर मौन छा जाये जिसमें वह दिव्य प्रकट हो सके तो ही हमने
श्रवण शक्ति पायी है. यदि कोई क्षण भर के लिए दर्पण में स्वयं को भी निहारे तो देखने
वाले के पीछे छिपा कोई नजर आने लगता है. उस अनजान से जब किसी का परिचय हो जाता है
तो जैसे सारा जगत ही उसका मित्र हो जाता है. बुद्ध का मुदिता, मैत्री, करुणा का
उपदेश तभी फलित होता है.