Thursday, May 30, 2019

मन को जिसने जान लिया है



मन पानी की तरह है, तरल ! और यह सदा प्रवाह में रहता है. चैतन्य अचल है पर उसकी ही शक्ति मन एक पल भी स्थिर नहीं रहता. चैतन्य स्वयं में संतुष्ट है पर मन सदा किसी न किसी तलाश में रहता है. जगत में विज्ञान का जो इतना विस्तार हुआ है वह मन के इसी खोजी स्वभाव का ही परिणाम है. मन यदि अपने इस स्वभाव से परिचित हो जाये तो अपने बदलाव को सहजता से स्वीकार कर लेगा. एक तरंग की तरह जो उसमें चढ़ाव व उतराव आते हैं, कभी वह सुख का अनुभव करता है कभी उदासी का, तो इस बदलाव को वह एक आश्चर्य की तरह देखेगा, इसका उपयोग करेगा  और आगे बढ़ जायेगा. मन गतिशील है एक नदी की धारा की तरह, कभी उथला है जल और कभी गहरी है नदी, कभी फूलों के हार उसमें बहते हैं, कभी सड़े हुए पत्तों को लिए कोई सूखी डाल. मन को जिस स्थान से देखा जा सकता है वहीं विश्राम है. जीवन में गति और विश्राम दोनों ही चाहिए. 

Tuesday, May 28, 2019

पल पल सजग रहे जब मन



हम अपने सुख के लिए जितना-जितना बाहरी वस्तुओं का आश्रय लेते हैं, मन की संवेदनशीलता उसी अनुपात में घटती जाती है. देह को बनाये रखने के लिए जितना आवश्यक है और जो लाभदायक है वैसा ही और उतना ही आहार यदि हम लेते हैं तो मन सजग है. इसी प्रकार वस्त्र और अन्य इस्तेमाल में आने वाली वस्तुएं यदि दिखावे के लिए होती हैं तो मन असजग ही कहा जायेगा. आजकल ध्यान के प्रति लोगों की रूचि बढ़ रही है, किंतु यदि मन सोया हुआ है तो उसे ध्यान की झलक मिलेगी कैसे. सजगता ही तो ध्यान है. यदि कोई मन को बहलाने के लिए मनोरंजन का ही आश्रय ले लेता है तो वह भीतर के वास्तविक सुख को पाने का प्रयास ही क्यों करेगा. संसार के सारे सुख मन के आगे रखे गये खिलौने ही तो हैं. साधक उनकी व्यर्थता को जान लेता है और और तब ध्यान की यात्रा आरम्भ होती है. मन जब ठहर जाये तो शुद्ध चैतन्य की पहली झलक मिलती है. पुनः पुनः इसे दोहराने पर यह भीतर की सहज अवस्था बन जाती है. साधक तब मन से उसी तरह काम ले सकता है जैसे कोई आँख आदि से काम लेता है, अर्थात जब जो सोचना चाहे उतनी देर उस विषय पर सोचे, यह क्षमता तब विकसित होती है.

हम उस देश के वासी हैं



चुनाव आये, हफ्तों तक चले और अब परिणाम भी आ गया. देशवासियों ने मिलकर एक निर्णय लिया और एक मजबूत सरकार को चुना. आज हर भारतीय एक नये भरोसे और विश्वास के साथ भविष्य की ओर बढ़ रहा है. प्रधानमन्त्री ने कहा है पारदर्शिता और परिश्रम के बिना विकास का मार्ग तय नहीं किया जा सकता. हर व्यक्ति सुख चाहता है, सुख का आधार है हमारी पारमार्थिक जीवनशैली. जिसमें प्रकृति का सम्मान हो और अपने बुजुर्गों का आदर हो. जिसमें हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति हमारे श्रम से होती हो, न कि किसी अनुदान से. स्वच्छता की जिम्मेदारी हर कोई निभाए और सामाजिक बुराइयों को दूर करने का बीड़ा भी सब मिलकर लें. देश हम सबका है और इसको समृद्धि की और ले जाना हमारे ही हाथ में है. यदि हम सरकार की नीतियों को जमीन पर उतरते हुए देखना चाहते हैं तो हमें भी अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करके सहयोग करना होगा.