Thursday, September 30, 2021
निज स्वभाव में टिक जाए जो
असलियत को जो पहचाने
मन परमेश्वर की स्मृति में सहज रूप से लगा रहे, उसे लगाना न पड़े तो ही जानना चाहिए कि अंतर में प्रेम का अंकुर फूटा है. चारों ओर उसी परमात्मा का वैभव तो बिखरा है, उसी की सृष्टि का उपयोग हम करते हैं पर उसे भुला बैठते हैं. जबकि वह हर क्षण साथ है, दूर नहीं है. बस एक पर्दा है जो हमें उससे अलग किये हुए है. वह हर क्षण श्रद्धा का केंद्र बन सकता है, हर श्वास उसकी कृपा है. मन यदि हर क्षण उसी को अर्पित रहे तो इसमें कोई विक्षोभ आ भी कैसे सकता है. संसार की बातें उत्पन्न करने वाला भी वही है. यही आराधना ही राधा है, जिसके माध्यम से कृष्ण को पाया जा सकता है. वह आत्मा रूप में सबके भीतर है, जिसके प्रसाद के बिना मन आधार हीन होता है। बाहर का सुख टिकता नहीं, यह अनुभव बताता है. उस एक से प्रीति हो जाने पर परम सुख और सुविधा मिलती है वह कभी छूटती नहीं, अपने उच्च तत्व का साक्षात्कार करना यदि आ जाये तो देह के अस्वस्थ या मन के दुखी होने पर स्वयं को अस्वस्थ या दुखी मानना छूट जायेगा. जैसी दृष्टि होगी यह जगत वैसा ही दिखेगा. अँधेरी रात में एक ठूँठ को एक व्यक्ति चोर समझता है, दूसरा साधू और तीसरा रौशनी करके उसकी असलियत पहचानता है. हमें भी इस जगत की वास्तविकता को पहचानना है. न इससे आकर्षित होना है न ही द्वेष करना है. तभी हम मुक्त हैं.
Tuesday, September 21, 2021
तीन गुणों का जो साक्षी
इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति के रूप में काली, लक्ष्मी और सरस्वती हमारे भीतर विद्यमान हैं। ये तीनों ही तमोगुण, रजो गुण तथा सतो गुण का भी प्रतीक हैं। तीनों गुणों के ऊपर एक ही ब्रह्म तत्व है। अलग-अलग नाम-रूप में वही एक तत्त्व समाया है। तीनों गुणों से पार जा कर ही मानव अपने सहज धर्म या स्वभाव का अनुभव करता है। सहज धर्म में स्थित रहना मानव को इन शक्तियों के शुद्ध रूप से जोड़कर रखता है। सहज धर्म से विचलन ही अहंकार है। आत्मा जब तीनों गुणों की साक्षी हो जाती है तो ब्रह्म तत्त्व में स्थित हो जाती है। उसे जानना ही आत्मसाक्षात्कार है।
Saturday, September 18, 2021
ध्यान साधना होगा मन को
ध्यान जब सधने लगता है तो कई अद्भुत अनुभव साधक को होते हैं. यह ज्ञात होता है कि हमारे भीतर कितनी सुंदरता छिपी है, जहाँ ईश्वर का वास है वहाँ सौंदर्य बिखरा ही होगा. ईश्वर प्राप्ति की आकांक्षा को इन अनुभवों से बल मिलता है. शरीर की अवस्था चाहे कैसी भी हो, सत्संग, स्वाध्याय व साधना को कभी त्यागना नहीं है. बाहरी परिस्थितियां कैसी भी हों, अपने भीतर की यात्रा पर जाने से वे हमें रोकें नहीं. अनंत धैर्य के साथ धीरे-धीरे इस मार्ग पर बढ़ना होता है और हृदय में यह दृढ़ विश्वास लिये भी कि इसी जन्म में मंजिल मिलेगी. मन से ईश्वर का स्मरण कभी जाये नहीं तो मानना होगा कि उसने पूरी तरह इस पर अधिकार कर लिया है. सँग दोष से बचना होगा और कमलवत् रहने की कला सीखनी होगी. वाणी का संयम व अन्तर्मुख होना भी आवश्यक है. संत कहते हैं, मधुमय, रसमय और आनन्दमय उस ईश्वर को पाना कितना सरल है. चित्त के विक्षेप से ही वह दूर लगता है लेकिन यह विक्षेप तो भ्रम है, टिकेगा नहीं. जबकि परमशक्ति शाश्वत है, अटल है, आधार है सबका. वह कहीं जाती नहीं. केवल चित्त की लहरों को शांत कर उसका दर्पण स्वच्छ करना है. जो
Wednesday, September 8, 2021
मन जब खाली हो जायेगा
अनात्म का चिंतन न करना ही आत्मा में स्थित रहना है। जो संसार पल भर के लिए भी स्थिर नहीं रहता, उसको कितना भी संभाला जाए वह छूट ही जाएगा, पर जो इसे देख रहा है वह मन मृत्यु के बाद भी साथ जाएगा। मन में यदि कोई अभाव है तो उसे पूर्ण करने के लिए वह संसार का आश्रय लेता है. थोड़ी देर के लिए लगता है मन भर गया पर फिर रिक्त हो जाता है. जैसे भोजन के कुछ घण्टों बाद पुनः भूख सताती है. मन को यदि यह ज्ञात हो जाये कि उसका स्वभाव ही खाली रहना है तो वह उसे स्वीकार लेगा और उस अभाव की गहराई में जाकर पूर्णता का अनुभव करेगा. जब मन को भरने की हर चाह गिर जाती है तब भी कुछ बचता है, वही आत्मा है. वह एक उपस्थिति मात्र है शांत और आनंद से भरी उपस्थिति. साधक जब संसार का चिंतन छोड़कर कुछ पलों के लिए चुपचाप बैठ जाता है, तो वह खालीपन दिव्यता से भरने लगता है.
Wednesday, September 1, 2021
मुक्ति का जो मार्ग चुनेगा
जब मन सीमित होता है तब असीम को जान नहीं पाता। उधेड़बुन में लगा रहता है तो विश्राम नहीं पाता । जब कुछ न कुछ चाहता है तब उतना ही पाता है। जिस क्षण भी हर चाह खो जाती है, अस्तित्त्व बरस जाता है। ध्यान का अर्थ है हर चाह, हर क्रिया, हर पहचान खो जाए, वही रहे जो सदा से है और सदा रहेगा। वहीं से प्रेम और शांति का दरिया बहेगा । उन पलों में कोई बोझ नहीं उठाना होगा, किसी को कुछ करके नहीं दिखाना होगा। ऊर्जा निर्बाध तन में बहेगी, प्रकृति जिसका उपयोग सहज ही करेगी। कृत्य होंगे पर कर्ता नहीं होगा। ध्यान मुक्ति का मार्ग दिखाता है और स्वयं से मिलाता है।