Thursday, June 29, 2023

जीवन में जब आये योग

शास्त्रों के अनुसार हमार शरीर एक रथ है अथवा तो एक वाहन है। आत्मा इसमें यात्री है, बुद्धि सारथि अथवा वाहन चालक है। मन लगाम या स्टीयरिंग है। इंद्रियाँ घोड़े अथवा पहिये हैं। सामान्य तौर पर यात्री को जहां जाना है वह सारथी से कहता है और अपने गंतव्य पर पहुँच जाता है। किंतु इस आत्मा रूपी सवार को अपना ही बोध नहीं है, इसलिए उसे कहाँ जाना है इसका बोध कैसे रहेगा।चालक का भी लगाम पर नियंत्रण नहीं है, घोड़े भी मनमानी करते हैं। कोई उत्तर जाना चाहता है, जहां से सुंदर ध्वनियाँ आ रही हैं, कोई दक्षिण, जहां से सुंदर गंध आ रही है। इंद्रियाँ ऐसे ही मन को भटकाती हैं, बुद्धि मन के पीछे लगी है। आत्मा कहीं भी पहुँच नहीं पाती, हिचकोले खाती, उन्हीं दायरों में घूमती रहती है। कभी दुर्घटना हो जाती है तो वह चौंक कर जागती है, वाहन को दुरस्त कराती है, योग का जीवन में प्रवेश होता है। सारथि को लगाम पकड़ना सिखाना ही मन का नियंत्रण करना है। सारथि रूपी बुद्धि का ज्ञान से योग होता है तो जीवन की गाड़ी सही मार्ग पर चलने लगती है। मार्ग में सुंदर प्रदेशों के दर्शन करते हुए वह अन्यों का  भी सहयोग करती है। जीवन का एक नया अध्याय आरंभ होता है। 


Tuesday, June 27, 2023

जिसने भेद स्वयं का जाना

संत व शास्त्र कहते हैं, विद्यामाया  विशिष्ट चेतन के कारण ब्रह्म ईश्वर की उपाधि  ग्रहण करता है और अविद्यामाया विशिष्ट चेतन के कारण ब्रह्म जीव की उपाधि ग्रहण करता है। जीव और ईश्वर का एकत्व उनके ब्रह्म होने में है और भेद विद्या और अविद्या के कारण है। ईश्वर माया का अधिपति है और जीव माया का सेवक है। ईश्वर योगमाया  का उपयोग करके जगत का कल्याण करता है, जीव महामाया के वशीभूत होकर विकारों से ग्रस्त हो जाता है। ईश्वर सदा अपने चैतन्य स्वरूप को जानता है, जीव स्वयं को जड़ देह और मन आदि मान लेता है। जिस क्षण जीव को अपने ब्रह्म होने का भान हो जाता है, वह ईश्वर से जुड़ जाता है।  


Sunday, June 25, 2023

जब स्वीकार जगे अंतर में

यह जगत ईश्वर का ही साकार स्वरूप है। जड़-चेतन सबका आधार एक ब्रह्म है। एक ही ऊर्जा भिन्न-भिन्न रूपों में अभिव्यक्त हो रही है। जीव और ब्रह्म में मूलतः भेद नहीं है, सारे भेद ऊपर के हैं। अंत:करण में चैतन्य का आभास होने से बुद्धि स्वयं को चेतन मानने लगती है, और मिथ्या अहंकार का जन्म होता है।अहंकार हरेक को पृथकत्व का बोध कराता है, यह अलगाव ही जगत में दुख का कारण है। जो व्यर्थ तुलना और स्पृहा के कारण व्यथित हो जाये, जो नाशवान वस्तुओं के कारण स्वयं को गर्वित अनुभव करे, उस अहंकार का भोजन दुख ही है। मन, बुद्धि आदि जड़ होने के कारण स्वतंत्र नहीं है, प्रकृति के गुणों के अधीन हैं।जैसे कोई खिलौना स्वयं को गतिशील देखकर चेतन मान ले ऐसे ही चिदाभास या प्रतिबिंबित चेतना स्वयं को कर्ता मान लेती है। मानव सदा एकरस, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त चैतन्य आत्मा है।वह पूर्ण है, प्रेमस्वरूप है, आनंद उसका स्वभाव है। प्रेम तथा आनंद को व्यक्त करना दैवीय गुण हैं। आत्मा में रहना सदा स्वीकार भाव में होने का नाम है। 


Monday, June 19, 2023

चले योग की राह पर जो भी

आज के समय में लोग बाहर इतना उलझ गये हैं कि अपने भीतर जाने की राह नहीं मिलती। कहीं कोई प्रकाश का स्रोत मिल जाये तो वे उसके पास जमा हो जाना चाहते हैं। आश्रमों में भीड़ बढ़ती जा रही है। कथाओं, मंदिरों, सत्संगों में भी भीड़ ज्यादा है। जनसंख्या बढ़ती जा रही है यह कारण तो है ही, पर सामान्य जीवन में इतना दुख, इतनी अशांति है कि लोग कुछ और पाना चाहते हैं। संत कहते हैं, साधना करो, भीतर जाओ, अंतर्मुखी बनो, पर ऐसा कोई-कोई ही करते हैं। अधिकतर तो भगवान को भी बाहर ही पाना चाहते हैं।  कोई प्रार्थना की विधि पूछते हैं तो कोई भगवान पर भी मानवीय गुणों को आरोपित कर उसे बात-बात पर क्रोध करने वाला बना देते हैं। कुछ रिश्तों के जाल में उलझ गये हैं। वे उससे बाहर नहीं निकल पाते, कोई जाति, धर्म, लिंग भेद में धंस गये हैं । स्त्री-पुरुष के मध्य समानता के नारे लगाये जाते हैं, पर स्त्रियों के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है।ऐसे में जब तक योग व अध्यात्म को जीवन का एक आवश्यक अंग बनाकर उसकी शिक्षा नहीं दी जाती, मानव जीवन में अशांति को दूर नहीं किया जा सकता। 


Monday, June 12, 2023

सत्व बढ़ेगा जब जीवन में

सृष्टि का आधार सच्चिदानंद है, अर्थात् जो सदा है, ज्ञान स्वरूप है और आनंद से परिपूर्ण है। जड़-चेतन जो भी पदार्थ हमें दृष्टिगोचर  होते हैं, वे रूप बदलते रहते हैं; किंतु उनका कभी नाश नहीं होता। यहाँ पदार्थ ऊर्जा में और ऊर्जा पदार्थ में निरन्तर बदल रही है।हम जो भोजन करते हैं उसका सूक्ष्म अंश ही मन बन जाता है, इसलिए सात्विक भोजन का इतना महत्व है। राजसिक भोजन मन को चंचल बनाता है और तामसिक भोजन प्रमाद से भर देता है। शरीर में आलस्य, भारीपन  तथा बेवजह की थकान भी गरिष्ठ भोजन से होती है। इतना ही नहीं पाँचों इंद्रियों से हम जो भी ग्रहण करते हैं, मन पर उसका प्रभाव पड़ता है। यदि हम चाहते हैं कि मन सदा उत्साह से भरा हो, सहज हो तो इसे सत्व को धारण करना होगा और अंततः उसके भी पार जाकर अनंत में विलीन होना होगा। मन जब स्वयं को समर्पित कर देता है तो भीतर शुद्ध अहंकार का जन्म होता है, जो सदा ही पावन है। 


Tuesday, June 6, 2023

जिस पल भी मन ठहरेगा

जीवन परम विश्रांति का साधन बन सकता है, यदि कोई अंतर्मुखी होकर अपने भीतर झांके। तीव्र गति से भागते हुए दरिया से मन को आहिस्ता-आहिस्ता बांध लगाये, फिर थिर पानी में स्वयं की गहराई का अनुभव करे। उस शांत ठहरे हुए मन की गहराई में पहली बार ख़ुद की झलक मिलती है। कोमल, स्निग्ध, शांति का अनुभव होता है। वह कितनी भी क्षणिक क्यों न हो, उसकी स्मृति सदा के लिए मन पर अंकित हो जाती है; फिर कभी ऊहापोह में फँसा मन उसी की याद करता है, उसे लगन लग जाती है। भक्ति का जन्म होता है। उसके प्रति आकर्षण कम नहीं होता, बढ़ता ही जाता है। इसमें चाहे कितना ही समय लग जाये, वर्षों का अंतराल हो पर एक न एक दिन वह स्वयं को अस्तित्व से जुड़ा हुआ जानता है। यही समाधि का क्षण है। 


Sunday, June 4, 2023

विश्व पर्यावरण दिवस पर शुभकामनाएँ

पर्यावरण शुद्ध रहे, यह सभी चाहते हैं। नदी, पहाड़, घाटी, पठार सभी स्वच्छ रहें तो उनमें बसने वाले जीव भी स्वस्थ होंगे। जल-वायु शुद्ध हों तो  मानवों का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा। किंतु यह सब तभी संभव है जब हम गंदगी के निस्तारण की सुव्यवस्था कर सकें। आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या कचरे के इस महासुर से धरा की  रक्षा करना है। समुद्र की गहराई हो या अंतरिक्ष, धरती के सुदूर प्रदेश हों या नदियाँ, हर जगह इसके कारण प्रदूषण फैल रहा है। इसे रीसाइकिल करके पुन: उपयोग में लाने योग्य बनाने से समस्या काफ़ी हद तक हल हो सकती है।छोटे स्तर पर ही सही हम सभी अपने घर से ही इसकी शुरुआत कर सकते हैं। सर्वप्रथम सूखे कचरे व गीले कचरे को अलग-अलग रखना होगा। सब्ज़ियों के छिलकों से खाद बनायी जा सकती है। वस्तुतों को जल्दी-जल्दी  न बदलें, उन्हें पूरी तरह इस्तेमाल करें। प्लास्टिक के थैलों का उपयोग बंद करें। अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगायें। 


हरा-भरा हो आलम सारा 

हरियाली नयनों को भाती, 

मेघा वहीं बरस जाते हैं 

जहाँ  पुकार धरा से आती !


मरुथल मरुथल पेड़ लगायें 

हरे भरे वन जंगल पाएँ, 

बादल पंछी मृग शावक सब 

कुदरत देख-देख हर्षाये !


परायवर्ण हमारी थाती 

रक्षा करें सभी मिलजुल कर, 

जीवन वहीं फले-फूलेगा 

जहाँ बहेंगे श्रम के सीकर !