Monday, March 28, 2022

इतनी शक्ति हमें दी है दाता

आत्मा में अनेक शक्तियाँ होते हुए भी मानव स्वयं को दुर्बल मानता है, वह जड़ को तो बहुत महत्व देता है पर स्वयं की महिमा से अनभिज्ञ रहता है। जहाँ भी जीवन है वहाँ आत्मा विद्यमान है। परमात्मा की तरह जीव अनादि और अनंत है। चेतना उसका लक्षण है, चेतना को नष्ट नहीं किया जा सकता केवल विस्मृति के पर्दे से उसे आवृत किया जा सकता है। स्वयं में निहित दर्शन शक्ति व ज्ञान शक्ति के द्वारा जीव संसार का ज्ञान प्राप्त करता है । उसके भीतर स्मरण की भी एक शक्ति है जिससे वह जगत के अनेक पदार्थों को उनके उपयोग सहित स्मरण रखता है। आत्मा में सुख को अनुभव करने की भी एक शक्ति है, हमें लगता है सुख बाहर के पदार्थ देते हैं पर कभी तन अस्वस्थ हो तो बाहर के अमूल्य पदार्थ भी सुख नहीं देते। इस आत्मीय सुख का कारण है परमात्मा में असीम श्रद्धा और मन की निर्मलता। जब मन में मोह होता है तो श्रद्धा अचल नहीं रह पाती और सुख तब दुःख में बदल जाता है। आत्मा में शौर्य की भी एक शक्ति है जो जगत में हर परिस्थिति का सामना करने की प्रेरणा देती है। इस शौर्य शक्ति के कारण ही अटल श्रद्धा भी टिकी रहती है। 


Wednesday, March 23, 2022

कौन यहाँ क़िसमें रहता है

क्या आपने कभी सोचा है, मन में शून्य है अथवा शून्य में मन है ? यदि कोई कुएँ से पानी भर रहा हो और सोचे कि घट में जल है या जल में घट ? इसी तरह दिल में रब है या रब में दिल है ? हम देह में रहते हैं या देह हममें  ? भक्त भगवान से पूछे, तुझमें मैं हूँ या तू मुझमें है ? स्वर्ण में कंगन है या कंगन में स्वर्ण ? वस्त्र में धागा  है या धागे  में वस्त्र ? और तो और, क्या सवाल में जवाब है या जवाब में सवाल छुपा है ? धरती पर जल है या जल में ही धरती है ?  इन सारे सवालों के उत्तर में मात्र एक शब्द मिलेगा ! 

वह है अनंत ! 

मन सीमित शून्य अनंत ज्यों, 

तन सीमित मन असीम है !

दिल छोटा सा रब अपार है, 

रूप लघु अरूप अनंत ! 


उस अनंत शून्य में थिरता 

वहीं छिपी है मन की समता !

वहीं जागरण, वहीं समाधि 

वहीं ठहर परमपद मिलता !


Tuesday, March 22, 2022

चक्र व्यूह से बाहर हुआ जो

आज का दिन सृष्टि के इस क्रम में पहली बार आया हो या अनेक बार दोहराया गया हो, हमारे लिए नया  है; क्योंकि सृष्टि की गति रैखिक नहीं है, यह एक चक्र है; सुबह, दोपहर, शाम व रात के बाद फिर सुबह आती है और समय का चक्र चलता रहता है। इस चक्र में हर प्राणी घूम रहा है, जो इससे बाहर हो गये वे मुक्ति का अनुभव करते हैं। मन भी एक च्ग्क्र में बँधा गोल-गोल घूमा करता है, कभी कहीं पहुँचता नहीं। सुबह के समय मन में सात्विक भाव उठते हैं, दिन ढलते-ढलते वे खो जाते हैं। राजस और तमस अपना प्रभाव डालने लगते हैं। जब हम आदतों में बंधकर कार्य करते हैं, जानते हुए भी कि यह आदत ठीक नहीं है, तब हम तमस के प्रभाव में होते हैं। जो करणीय है वह कभी छूट ना जाए जैसे सृजन, सेवा और ध्यान, मनन, चिंतन और स्वास्थ्य के लिए व्यायाम, प्राणायाम आदि। साधना की प्रक्रिया सतत चलने वाली है। यदि स्वयं तथा अन्यों के कल्याण की भावना से कोई कृत्य किया जाता है तो वह भी सेवा है। ऐसा कृत्य परमात्मा से जुड़े होकर ही हो सकता है। हमारा मूल स्वभाव शांति, आनंद, और प्रेम है, इस बात को याद रखते हुए तथा परमात्मा का हाथ सदा सिर पर है, इसे स्मरण रखते हुए हर दिन का स्वागत ही नहीं उसे विदा भी सात्विक भाव में रहकर करना है। 


Monday, March 21, 2022

आख़िर कब यह युद्ध थमेगा

रूस और यूक्रेन के मध्य हो रहे युद्ध का आज सत्ताईसवां दिन है। विनाश की इस लीला को सारा विश्व देख रहा है पर कोई भी कुछ कर नहीं पा रहा है। इसे रोकना तो दूर समझौते की बात भी कहीं चल नहीं रही है। इससे बड़ी मानवीय त्रासदी भला क्या होगी ? दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सरकारों को यह समझ में आया था कि युद्ध कितने भयावह हो सकते हैं, इतने वर्षों तक सभी देशों ने संयम से काम लिया किंतु आज कुछ देशों की विस्तारवाद,साम्राज्यवाद और प्रभुत्व वाद की नीतियों के कारण भय, आशंका और संदेह  के बादल सब ओर घिर गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ भी मूक दर्शक की तरह देख रही हैं। एक ही धरती के बाशिंदे होकर दो देश इस तरह लड़ रहे हैं जैसे जन्मों के दुश्मन हों। यूक्रेन के शहरों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है।एक करोड़ से अधिक लोग अपने घरों से विस्थापित हो गये हैं। आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अधर में है, जब वे आज के हालातों के बारे में जानेंगे, क्या उनके भीतर प्रतिशोध की भावना का जन्म नहीं होगा? प्रेम की जगह हिंसा की भावना से ही उनका पोषण हो रहा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति को राजनीति और राजधर्म की समझ होती तो अपनी निर्दोष जनता को इस तरह नरक में ना धकेलते। इंटरनेट नहीं दिया जा रहा यह कहकर मानवाधिकारों की बात करने वाले लोग आज चुप बैठे हैं जबकि लाखों लोगों के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।युद्ध धरती के किसी भी भाग में हो उसकी आँच से कोई भी नहीं बचा रह सकता। हम अंधे, बहरे हो जाएँ शतुर्मुर्ग की तरह आँखें मूँद ले या रेत में मुँह छिपा लें तब ही इसकी भीषणता से मुख मोड़ सकते हैं। फिर यही कहकर मन को समझा लेते हैं कि जब से दुनिया बनी है, युद्ध होते रहे हैं, यह कोई अनहोनी तो नहीं हो रही, अर्थात मानव ने न सीखने की क़सम खा ली है। हर दिन जो इतने हथियारों का निर्माण होता है उनके उपयोग के लिए भी तो कोई स्थान और समय चाहिए, कभी न कभी उनका इस्तेमाल होगा यही सोच कर हथियार बनाए जाते हैं। इक्कीसवीं सदी में इतनी बर्बरता को देखकर मानवीय मूल्यों की सब बातें कितनी खोखली लगती हैं। 

Wednesday, March 16, 2022

बासन्ती बयार बहे जब

 होली का उत्सव मनों में कितनी उमंग जगाता है, सारा वातावरण जैसे मस्ती के आलम में डूब जाता है. प्रकृति भी अपना सारा वैभव लुटाने को तैयार रहती है. बसंत और फागुन की मदमस्त बयार बहती है और जैसे सभी मनों को एक सूत्र में बांध देती है. उल्लास और उत्साह के इस पर्व पर कृष्ण और राधा की होली का स्मरण हो आना कितना स्वाभाविक है. कान्हा के प्रेम के रंग में एक बार जो भी रंग जाता है वह कभी भी उससे उबर नहीं पाता. प्रीत का रंग ही ऐसा गाढ़ा रंग है जो हर भक्त को सदा के लिए सराबोर कर देता है. मन के भीतर से सारी अशुभ कामनाओं को जब होली की अग्नि में जलाकर साधक खाली हो जाता है अर्थात उसका मन शुद्ध वस्त्र पहन लेता  है तो परम  उस पर अपने अनुराग का रंग बरसा देता है. अंतर में आह्लाद रूपी प्रहलाद का जन्म होता है, विकार रूपी होलिका भस्म हो जाती है और चारों ओर सुख बरसने लगता है. होली का यह अनोखा उत्सव भारत के मंगलमय गौरवशाली अतीत का अद्भुत भेंट है.

Monday, March 14, 2022

नीर-क्षीर-विवेके हंस

कौआ चला हंस की चाल तो भूला अपनी भी और हुआ हाल-बेहाल, यह कहावत तो हमने कई बार सुनी है और इसका सामान्य अर्थ भी सभी जानते हैं; यदि इसका आध्यात्मिक  अर्थ जानना हो तो हम मन की तुलना कौए से कर सकते हैं और हंस की आत्मा से। हंस को नीर-क्षीर विवेकी कहा जाता है, वह जल मिले दूध से जल को छोड़कर केवल दूध ग्रहण कर लेता है। मन के पास यह विवेक नहीं होता। अक्सर हम मन की इच्छा को आत्मा की पुकार समझकर मन के बहकावे में आ जाते हैं। मन का झुकाव नकारात्मकता की ओर अधिक होता है, यदि कोई दस अच्छे काम करे पर एक ग़लत तो मन उस एक पर ही अपना ध्यान केंद्रित करता है, निरंतर कौए की तरह राग अलापता है पर उसमें कोई सार नहीं होता। आत्मज्ञानी बुरे से बुरे व्यक्ति में भी कोई न कोई अच्छाई ढूँढ लेता है, क्योंकि उसका ध्यान सदा सकारात्मकता की ओर ही होता है, वह हंस की तरह शांत रहता है और ज्ञान के मोती चुनता है।मन से की गयी भक्ति और श्रद्धा डोलती रहती है, विपत्ति आने पर वह मंदिरों के चक्कर लगाता है पर सुख के समय सब भूल जाता है। आत्मा सहज प्रेम स्वरूप है, उसमें टिकना ही भक्ति है। मन द्वंद्व का दूसरा नाम है, जहाँ दो हैं, वहाँ चुनाव भी होगा और संघर्ष भी, इसलिए भौतिकतावादी लोग जीवन को एक संघर्ष मानते हैं। आत्मा में एक ही है, वहाँ अद्वैत है, इसलिए आत्मज्ञानी जीवन को उत्सव कहते हैं। 


Friday, March 11, 2022

प्रेम गली अति सांकरी

 सन्त कहते हैं, प्रेम ही वह सूत्र है जिसे पकड़कर हम ईश्वर तक पहुंच सकते हैं.  तभी हम जान पाते हैं कि सभी प्राणी अस्तित्त्व का ही अंश हैं, इससे किसी का कोई विरोध नहीं है. जब कोई  प्रेमपूर्ण हो जाता है तो ध्यान पूर्ण भी हो जाता है. जब वह आँख भर कर अपने को देखता  है तो पाता है कि वह ऊर्जा के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं. अपने को मिटाने पर अपने में ही यह पता चलता है कि वह नहीं है और वैसे ही पता चलता है कि केवल परमात्मा है. वह भौतिक देह है यह सोचना ही आँखों पर पड़ा पर्दा है. ध्यान में वही मिटता है जो है ही नहीं. जो है वह कभी मिटता ही नहीं. जब तक मन अशांति से ऊबे नहीं तब तक झूठ-मूठ ही खुद को बनाये रखना चाहता है, अहंकार की यात्रा जब तक तृप्त नहीं होती तब तक सीमित ‘मैं’ नहीं मिटता !

Tuesday, March 8, 2022

रिक्त गगन सा मन हो अपना

ब्रह्म का बीज लिए तो सब आते हैं पर बिन बोये ही चले जाते हैं, ऐसे बीज और कंकर में अंतर भी क्या. हर मन की गहराई में ब्रह्म छिपा है पर जैसे बीज को मिटना होता है फूल खिलने के लिए, मन को भी मिटना होता है तभी ब्रह्म का फूल खिलता है. जिस दिन मन जान लेता है कि उसके होने में ही बंधन है तब यह स्वयं को सूक्ष्म करने की प्रक्रिया प्रारम्भ करता है. यह ‘मैं’ का पर्दा मखमल से मलमल का करना है, जिस दिन मन पूरा मिट जाता है उस दिन परमात्मा ही बचता है.  जीवन में दो ही विकल्प हैं, या तो ‘मैं’ भाव में जियें या प्रेम भाव में. जगत और परमात्मा दो नहीं है पर वह तभी दिखाई देता है जब संसार माया हो जाता है. अभी मन खाली नहीं है, भीतर कोलाहल है, इसे शांत करके ही मन महीन किया जा सकता है. जो जितना सूक्ष्म होता जायेगा उतना ही शक्तिशाली होता जायेगा. वह चट्टान सा दृढ़ भी होगा और फूल से भी कोमल. वह होकर भी नहीं होगा और उसके सिवा कुछ होगा भी नहीं, सारे द्वंद्व उसमें आकर मिट जयेंगे. वह होने के लिए कुछ करना नहीं है. वह तो है ही, केवल उसे जानना भर है. मन को खाली करना ऐसा तो नहीं है कि कोई बर्तन खाली करना हो. कामना को त्यागते ही या समर्पण करते ही मन ठहर जाता है. ठहरा हुआ मन ही खाली मन है !