Tuesday, September 29, 2015

मुक्त हुआ मन उड़े गगन में


ज्ञान मन को मुक्त कर देता है. आत्मा का ज्ञान पाकर ही बुद्धि वास्तव में बुद्धि कहलाने की अधिकारिणी है. उसके पहले मन तो पाश में बंधा होता है, बुद्धि भी एक अधीनता का जीवन जीती है. मन की आधीन, इन्द्रियों की आधीन, धन, प्रसिद्धि, प्रशंसा की आधीन, मोह, क्रोध, अहंकार की  आधीन तथा और भी न जाने मन की कई सुप्त प्रवृत्तियों की अधीनता उसे स्वीकारनी पड़ती है. किन्तु आत्मा का ज्ञान होने के बाद जैसे कोई परदा उठ जाता है. मन, बुद्धि स्वयं को कितना हल्का महसूस करते हैं. 

Monday, September 21, 2015

सांचा तेरा नाम..


कृष्ण व्यापक है, परम सत्य व्यापक है किन्तु मद तथा मूढ़ता के कारण हम उसे देख नहीं पाते. जब हम सत्य की खोज में निकलते हैं तो मन भटकाता है, हम केंद्र से दूर हो जाते हैं. सत्य खोजने से नहीं मिलता बल्कि हम जहाँ हैं वहीं उसे प्रकट कर सकते हैं. सत्य शास्त्र से भी नहीं मिलता, शास्त्र उसका अनुमोदन भर करते हैं. जब-जब हम धर्म के मार्ग पर चले हैं, उसी में स्थित हैं. ईश्वर हमसे दूर नहीं है, वह तो निकटस्थ है, चाहे हम उसे याद करें अथवा न करें, वह हमारी आत्मा की भी आत्मा है.   

Tuesday, September 1, 2015

रुक जाये पल भर को मन


जगत आश्चर्यों से भरा है..यह सृष्टि अनोखी है. हजारों तरह के फूल, रंग-बिरंगी तितलियाँ, सुंदर मछलियाँ, उगता हुआ सूर्य, रात्रि के नीरव आकाश में लाखों सितारे..और उन सबसे बढ़कर मानव का  मन-मस्तिष्क. जिसमें न जाने कितने जन्मों की स्मृतियाँ और संस्कार अंकित हैं. जिन्हें हम स्वप्न के रूप में देखते हैं. इन सबको देखने वाला द्रष्टा जब विस्मय से भर जाता है तो स्तब्ध रह जाता है, विस्मय से भरा मन कुछ पल के लिए ही सही थम जाता है और तब उसे उसका पता चलता है जो इन सबको देख रहा है, वही हम हैं. यह सृष्टि मानो हमें आश्चर्य चकित करने के लिए ही बनाई गयी है ताकि हम खुद को पा सकें उन क्षणों में जब बाहर की विविधता हमें स्तब्ध कर दे.