जुलाई २००१
गुरुनानकदेवजी ने कहा है कि यह विशाल गगन ही उस परमेश्वर की आरती का थाल है, सूर्य, चन्द्र, तारे उसमें जलते हुए दीपक हैं, हवा फूलों और वनस्पतियों रूपी धूप की सुगंध फैला रही है और चंवर डुला रही है ... ऐसे विराट स्वरूप को क्या हम मन्दिरों में कैद कर सकते हैं...मंदिर हम जाते हैं ताकि उसकी याद आ सके, लेकिन वहाँ की पवित्रता भी यदि भीतर कोई परिवर्तन नहीं ला रही, तो भाव शून्य होकर पूजा करना समय व शक्ति का पूरा-पूरा उपयोग नहीं कहा जा सकता. हमारे भीतर पूर्ण जीवन की सम्भावनाएं छिपी हुई हैं, सृजन, सुख और आनंद के स्रोत हैं जो हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं. भीतर के मंदिर के द्वार खुलें यही बाहर के मंदिर की सार्थकता है.