Thursday, May 30, 2024
जीवन में जब लय आती है
मध्य मार्ग में चलना होगा
जो प्रसन्नता किसी बाहरी वस्तु पर आधारित नहीं है, उसमें कोई उत्तेजना नहीं है। यह मौन से उपजी है। इसमें मन शांत हो जाता है। यहाँ कुछ भी विशेष नहीं घटता है। यहाँ अहंकार छूट गया है। ऐसी मनोदशा में न ही निराशा है ना आशा, न सुख न दुख। यह वास्तविक मुस्कान है, जिसमें आँसुओं की गहराई भी छिपी है।क्योंकि विपरीत मध्य में एक हो जाते हैं। यदि हम सुख की तलाश करते हैं, तो दुख पीछे आने ही वाला है। यदि शांति, स्थिरता, मौन की तलाश करते हैं, तो भीतर एक स्थिरता का अनुभव होगा। ध्यान में यही घटता है । पल-पल सहजता से आगे बढ़कर उस मौन को पकड़ना है। इसे पोषित करके, इसकी रक्षा करनी है। संतोष का यही अर्थ है, जो कुछ भी है, वह अच्छा है। कोई जहाँ भी है, वह जब कृतज्ञता अनुभव करता है, तब भीतर जो प्रार्थना घटित होती है, वह तत्क्षण फलित होती है।
Monday, May 20, 2024
बुल्ला ! की जाना मैं कौन
अधिकतर लोग यह मानते हैं कि बाहर से जीवन में कोई कमी न दिखाई देते हुए भी उनके दिल में इक खुदबुद सी लगी रहती है। कोई व्यक्ति वास्तव में चाहता क्या है, उसे इसकी खबर भी नहीं होती।संभवत: हर किसी की तलाश एक ऐसी शांति या सुकून की है, जो सदा-सदा के लिए भीतर का ख़ालीपन भर दे।वस्तुओं से बाज़ार भरा पड़ा है, किंतु वहाँ ऐसा कुछ नहीं मिल सकता जो इस अभाव को भर दे। इस तरह जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, यह बेचैनी दिनबदिन बढ़ती जाती है । एक दिन यही किसी न किसी रोग के रूप में प्रकट होती है।बेचैनी ज्यों ज्यों बढ़ती है, मन का सुकून घटता जाता है कोई इसे परिवार, मित्रों या चिकित्सक से बयान करता है, कोई इसके बारे में कुछ नहीं बताता। स्वयं ही ही मुक्त होने का उपाय खोजता है, किंतु वह यह भूल जाता है कि जिस मन ने इसे खड़ा किया है, वही मन इससे मुक्ति का उपाय कैसे बता सकता है।जो इसे दूर करे, वह दवाई कहीं बाहर नहीं मिलती। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है, गुरु की शरण में जाना चाहिए, सत्संग करना चाहिए। गुरु और शास्त्र बताते हैं कि मन की तलाश अपने भीतर जाकर ही मिट सकती है। स्वयं से दूरी ही मानव को बेचैन करती है। जब तक कोई अपने होने को वास्तव में अनुभव नहीं कर लेता, बाहर के सुख और सुविधाएँ उसे वह शांति प्रदान नहीं कर सकते, जो वह चाहता है।
Saturday, May 11, 2024
लोकतन्त्र का पर्व मनाएँ
भारत में चुनावों का मौसम चल रहा है। यह लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व है।चारों ओर एक उत्सव का सा माहौल नज़र आता है। हर सड़क, गली, नुक्कड़ और चौपाल पर चहल-पहल है।देश ही नहीं विदेशों में भी भारत के चुनाव का जादू चल गया लगता है। कनाडा निज्जर और अमेरिका पन्नू पर अटक गया है। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को जहाँ प्रश्रय मिलता है, ऐसे भारत को विश्व सलाहें दे रहा है। जिस देश में विवाह के अवसर पर ‘गालियों’ को लोग सिर माथे लगाते हैं। होली पर लट्ठमारने की सुविधा दी जाती है; भला वहाँ चुनावों में एक-दूसरे की बखिया उधाड़ने में लोग पीछे क्यों रह जायें।आज सभी पार्टियों के नेतागण जमकर मन की भड़ास निकाल रहे हैं।विदेशी भूमि पर भारत की अखंडता को मिटाने का षड्यंत्र रचने वालों को महिमामंडित किया जा रहा है। ऐसे लोगों द्वारा जो यूक्रेन और इज़राइल को लाखों डालर देकर हज़ारों निर्दोषों को मरवा चुके है, भारत पर विदेशी भूमि पर लोगों को मरवाने का आरोप लगाया जा रहा है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है ! आज विदेशों में पढ़ने वाले कितने ही छात्र हिंसा का शिकार हो रहे हैं।पड़ोसी देश की भाषा बोलने वाले कुछ लोग भारत में बैठे हैं, जो उनके बम का हवाला देकर भयभीत कर रहे हैं। वह अपने क़ब्ज़े वाले कश्मीर को आटा तक मुहैया नहीं करवा पा रहा और भारत के कश्मीर में उसे खून की नदियाँ बहती दिखायी पड़ती हैं; पता नहीं कौन सा चश्मा उसने चढ़ाया हुआ है। इस चुनाव में कई तेजस्वी और निर्भीक महिलाओं ने भी समाज को दिशा दिखाने का बीड़ा उठाया है।यू ट्यूबर्स की भी आज जैसे बाढ़ आ गई है, जो भविष्यवाणियाँ कर रहे हैं। सबसे बड़े भविष्यवक्ता तो मतदाता हैं, जिनके हाथ में भारत का भविष्य है। आधा रास्ता तय हो गया है, आधा सफ़र शेष है। जो इसी तरह टीवी डिबेट्स देखकर हँसते-हँसाते निकल जाएगा। जय भारत ! जय श्रीराम !
Wednesday, May 8, 2024
एक तलाश सदा जारी है
Thursday, May 2, 2024
ध्यान, मुक्ति में भेद नहीं है
संत कहते हैं, साधक को हर सुबह अपने दिन की शुरुआत ऐसे करनी चाहिए जैसे कि वह पहली बार जगत को देख रहा है। ध्यान का अर्थ ही है, हर पल को गहराई से महसूस करना, हर पल ओस की तरह ताज़ा है, अभी है अभी नहीं रहेगा। अतीत मृत हो चुका है। जब हम अतीत को भुला देते हैं तो भविष्य की आशंका भी नहीं रहती।केवल शुद्ध वर्तमान रह जाता है। परमात्मा की उपलब्धि वर्तमान में ही हो सकती है। अतीत और भविष्य हमें स्मृति या कल्पना से बांधे रखते हैं। जबकि हर आत्मा की पुकार स्वतंत्रता है।शिशु भी मुक्त होना चाहता है और वृद्ध भी, किसी को भी आदेश या शासन में रहना नहीं भाता। अनुशासन का अर्थ है, स्वयं पर स्वयं का लगाया गया प्रतिबंध, जिसके भीतर हम मुक्त हैं। जब अतीत का बोझ नहीं है और आने वाले कल की चिंता नहीं है तभी मन अपने शुद्ध व मुक्त स्वरूप का अनुभव कर सकता है। यही ध्यान है।