Thursday, May 30, 2024

जीवन में जब लय आती है

सत्य का अनुभव हो जाना सरल है, पर उस पर टिके रहना उतना ही कठिन। मन पुराने संस्कारों को आसानी से पकड़ लेता है और साधक को जो एक बहुमूल्य वस्तु मिली थी, उससे वह वंचित हो जाता है। वास्तव में प्रत्येक मनुष्य हर तरह के दुखों से मुक्ति चाहता है, किंतु जो कर्म उससे होते हैं, वे विपरीत फल देने वाले निकलते हैं। जब तक हम ध्यान के द्वारा मन के पार जाकर उस स्थान पर टिकना नहीं सीख लेते, मन नीचे ले जाने का हर प्रयास करता है। देह और मन एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। स्वस्थ रहने का अर्थ है, रोग रहित देह, पीड़ा रहित मन और सदा कुछ नया सीखने को उत्सुक बुद्धि। स्वास्थ्य के लिए नियमित व्यायाम और सात्विक भोजन, मन के लिए सत्संग और बुद्धि के लिए स्वाध्याय यदि मिलता रहे तो तीनों आनंदित रह सकते हैं। देह में यदि कोई रोग हो गया है तो तुरंत उसका समाधान खोजना चाहिए। उसका इलाज करना चाहिए। मन यदि अवसाद से ग्रस्त है तो ध्यान सीखकर मन को शांत रखने का उपाय खोजना होगा और नवीन विषयों की जानकारी लेते हुए बुद्धि को भी उसकी खुराक देनी होगी। चेतना की ऊर्जा को यदि समुचित मार्ग नहीं मिलता तो वह भटक जाती है और जीवन जो आनंद का एक स्रोत बन सकता था, एक पहेली बनकर रह जाता है। 

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