मार्च २००५
मन रे कर सुमिरन हरि नाम
! नाम लिए से मिट जाते हैं जन्म-जन्म के काम ! ईश्वर के बिना हमारे लिए कोई रक्षक
नहीं, हमारे तथाकथित प्रेम आदि (मोह) ही हमें दुःख की ओर लिए जाते हैं, बंधन में
डालने वाला यह स्वार्थ ही तो है, ईश्वर हमें इससे छुड़ाता है और अमरता के उस परम पद
तक पहुंचा देता है जहाँ से फिर पतन नहीं होता. वह हमारा हितैषी है, सुह्रद है,
अकारण दयालु है, प्रेममय है, रस मय है, वह जो है, जैसा है आज तक कोई बखान नहीं कर
पाया. वह हमारे कुम्हलाये हुए मन को ताजगी से भर देता है, अनंत शक्ति का भंडार है,
वह हमें अनेकों बार सम्भलने का मौका देता है, सदा हमारी रखवाली करता है, जैसे ही
हम उसकी ओर कदम बढ़ते हैं, वह हाथ थाम लेता है. हमारे साथ प्रेम का आदान-प्रदान
करने के लिए सदा तत्पर है. एक बार प्रेम से पुकारते ही वह हमारे मन को अपने जवाब
से भर देता है. उसे हमारी योग्यता की नहीं हमारे प्रेम की चाह है, वही सच्चा
प्रेमी है, हम तो प्रेम के नाम पर व्यापार करते हैं. वह परमात्मा हमारी आत्मा की भी
आत्मा है.