मार्च २००५
पांच
तत्वों से मिलकर हमारा भौतिक घर बना है तथा पांच ही तत्वों से मिलकर शरीर का घर भी बना है पर जैसे भौतिक घर स्थायी नहीं है,
वैसे ही शरीर भी स्थायी नहीं है. हमारी मृत्यु के समय वह छूट जाने वाला है, हमें
अपने लिए एक ऐसा घर बनाना है जो सदा उपलब्ध हो, जहाँ जीवन का कोई तूफान हिला न
सके. वह घर बनाने के लिए चार तत्वों की आवश्यकता होगी, पांचवा आकाश तो अपने आप ही
आ जायेगा. सर्वप्रथम मिटटी अथवा पृथ्वी होनी चाहिए सहिष्णुता की, दूसरा तत्व है जल,
उसकी निर्मलता, एक प्रसन्नता जो निर्मलता से उत्पन्न हुई है. तप से प्राप्त तेज व ओज
की अग्नि भी हमें चाहिए ताकि पुराने अवांछित कर्म संस्कार उसमें जल जाएँ. अनासक्ति
की वायु सदा प्रवाहित हो, अनासक्त होकर हम समता को प्राप्त होते हैं, स्थिरता को
प्राप्त होते हैं. ऐसे घर का निर्माण जब भीतर हम कर लेते हैं तो जीवन के झंझावातों
का सामना खुले दिल से कर सकते हैं. तब भीतर समाधान मिल जाता है, भीतर कोई प्रश्न
नहीं रह जाता, एक विस्मय से मन भर जाता है.
" क्षिति जल पावक गगन समीरा ।" वस्तुतः हमारे शरीर में जो खाली जगह है , वही आकाश का प्रतीक है । हम सभी पञ्चतत्व से ही बने हैं पर अनुपात की वजह से हम , एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं ।
ReplyDeleteसत्य वचन शकुंतला जी
Deleteबिलकुल सही कहा आपने समाधान भीतर है, हम बहार ढूंढते हैं।
ReplyDeleteयही तो है समत्व ,कर्म योग।
ReplyDeleteसंतोष जी, व वीरू भाई स्वागत व आभार !
ReplyDeleteविस्मय तब भी रहता है जब समाधान नहीं मिलता, विस्मय तब भी रहता है जब समाधान मिल जाता है। समाधान के बाद विस्मय सुख देता है और पहले वाला बेचैन।
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