Saturday, June 23, 2018

वृद्ध वही जो पूर्ण तृप्त हो


२३ जून २०१८ 
समय की धारा निरंतर बह रही है. जो आज अंकुर है, कल पौधा बनेगा, परसों वृक्ष और एक न एक दिन काल के गाल में समा जायेगा. किन्तु उससे पूर्व कितने फल-फूल उसकी शोभा बनेंगे, अनगिनत पंछियों का आश्रयस्थल वह वृक्ष बनेगा. कितने घरों के द्वार दरवाजे उसकी लकड़ी से आकार ग्रहण करेंगे. उससे उत्पन्न बीज नये अंकुर बनेंगे, और एक चक्र पूर्ण हो जायेगा. मानव का जीवन भी एक वृक्ष की भांति ही होता है, शिशु रूप में जो कोमल है, युवा होकर वही कितने उत्तरदायित्व सम्भालता है. अपने इर्द-गिर्द के वातावरण को विभिन्न रूपों से प्रभावित करता है. उसके सम्पर्क में आने वाले अनेकों व्यक्तियों को चाहे वे परिवार के सदस्य हों अथवा मित्र, या कार्यक्षेत्र के सहकर्मी सभी से विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान करता है. प्रौढ़ावस्था को पार करके एक दिन वही वृद्ध हो जाता है और जो सबको आश्रय देता था स्वयं को शक्तिहीन समझने लगता है. वृद्धावस्था में भी जो व्यक्ति नियमित दिनचर्या को अपनाकर, कुछ न कुछ शारीरिक और मानसिक श्रम करके स्वयं को व्यस्त बनाये रखता है और सदा प्रसन्न रहता है, उसका मन बालवत् हो जाता है. बालक कुछ न कुछ नया सीखने को उत्सुक रहता है, जीवन का हर दिन उसके लिए नई उम्मीद और नई चुनौती लेकर आता है. वृद्ध भी यदि अंत तक अपने भीतर के बालक को जीवित रखे और स्वयं को आने वाले भविष्य के लिए तैयार करता रहे तो उसकी यह अवस्था उसके लिए आनंद पूर्ण बन जाएगी.

Friday, June 22, 2018

करें योग रहें निरोग


२२ जून २०१८ 
कोई भी तनावग्रस्त व्यक्ति स्वयं के अस्तित्त्व को ही नहीं अपने चारों ओर के वातावरण को भी दूषित करता है, इसी तरह यदि कोई व्यक्ति शांत होता है तो शांति की लहरें उस तक ही सीमित नहीं रहतीं आस-पास के वातावरण को भी प्रभावित करती हैं. बिखरते हुए समाज को जोड़ने का काम योग से ही हो सकता है. भारत के संतों तथा प्रधानमन्त्री के कारण योग दिवस के रूप में विश्व को वर्ष में एक दिन ऐसा मिला है जिसको हर व्यक्ति मना सकता है. बच्चे, युवा, वृद्ध, स्त्री, पुरुष, गरीब, अमीर सभी किसी न किसी रूप में इस दिन अपने तन, मन और आत्मा के पोषण के लिए कुछ समय निकाल सकते हैं. आज जब कि संसार के सभी देश किसी न किसी समस्या से ग्रस्त हैं, योगदिवस पर लाखों लोगों ने आसन, प्राणायाम किये, ध्यान किया, जिसके परिणाम स्वरूप समाज, देश और दुनिया में सकारात्मक ऊर्जा की लहर फैली है.

Monday, June 18, 2018

तोरा मन दर्पण कहलाये


१८ जून २०१८ 
मन जल की तरह है, तभी तो वह जिस वस्तु में प्रवेश करता है उसी का आकार धारण कर लेता है. मन यदि कठोर हो जाये तो बर्फ जैसा हो जाता है, और क्रोधित हो जाये तो वाष्प जैसा. दोनों ही स्थितियों में वह अपना स्वभाव खो देता है. मन में यदि कोई विकार आ जाये तो भी वह अपनी सहजता खो देता है. जल नीचे की और बहता है, मन यदि अमानी होकर रहे तो स्वभाव में टिका रहेगा, अन्यथा असहज हो जायेगा. सम्मान की कामना ही मन को स्वभाव से दूर कर देती है, जबकि स्वभाव में ही विश्राम है. जल जीवन का प्रतीक है. इसी तरह चेतन सत्ता का जब प्रकृति के साथ संयोग होता है, मन के रूप में ही उसकी उपस्थिति का ज्ञान होता है, अर्थात जीवन की अभिव्यक्ति मन के द्वारा ही होती है. मन को समझ कर जो इसके पार देखने में सक्षम हुआ वही इसे सदा दर्पण की भांति चमकता हुआ देखना चाहता है.

Friday, June 15, 2018

'मैं' को नहीं मुक्ति है 'मैं' से


१५ जून २०१८ 
एक व्यक्ति एक संत के पास गया और मुक्ति का मार्ग पूछा. संत ने कहा, सजगता में ही मुक्ति है. क्योंकि बंधन सदा ही असावधानी में बंधता है. असावधानी वश जो भी कार्य देह द्वारा होते हैं, उनके पीछे एक खोया हुआ मन होता है, मन के पीछे सुप्त बुद्धि होती है और होता है अहंकार. अहंकार कभी अपने को गलत नहीं मान सकता, भले ही वह जान लेता है कि बुद्धि ने उचित निर्णय नहीं लिया, मन में सही विचार नहीं आया और कृत्य सही नहीं है, पर वह उसे किसी न किसी तरह सही सिद्ध करना चाहता है. इस प्रक्रिया में वह बंधन में बंध जाता है. अब यही अहंकार पीड़ित होकर मुक्ति के उपाय खोजता है. जब तक मन वर्तमान में नहीं होगा, बुद्धि सतर्क नहीं होगी, कर्म सही नहीं हो सकते. वर्तमान के क्षण में अहंकार को टिकने के लिए कोई जगह नहीं है, सजग बुद्धि को भी किसी की अनुशंसा नहीं चाहिए, यानि अहंकार की दाल वहाँ भी नहीं गलती, कर्म जब शुद्ध होते हैं तो उनसे किसी फल की आशा नहीं रहती, क्योंकि कर्म करते समय ही सुख का अनुभव होता है. कर्तापन के मिटते ही मुक्ति का अनुभव होता है.

Thursday, June 14, 2018

शक्तिस्रोत छुपा है भीतर


१५ जून २०१८ 
बाहरी साज-सज्जा कितनी भी शानदार हो यदि कोई घर भीतर से संवारा नहीं गया है तो उसमें रहने वाले स्वस्थ नहीं हो सकते. ऐसे ही हमारा मन यदि संसारी और किताबी ज्ञान से तो भरा हो पर भीतर से भीरु हो, भयभीत रहता हो, और संस्कारों का गुलाम हो तो आत्मा खिल नहीं सकती. बीज रूप में आत्मशक्ति सबके भीतर मौजूद है, उसे पनपने के लिए उर्वर भूमि चाहिए, ऐसा मन चाहिए जो तूफानों में भी अचल रहे, भक्ति की कल-कल धारा जिसमें बहती हो, शांति और आनंद से सुवासित पवन का जहाँ बेरोकटोक आवागमन हो. शांत और सुदृढ़ मन में ही आत्मा का तेज धारण करने की शक्ति हो सकती है. ऐसा मन जो जगत को साक्षी भाव से देखता हो, दर्पण की तरह जिसमें कोई प्रतिबिम्ब ठहरता न हो, जो अछूता ही रह जाता हो. ऐसे मन में ही उस ज्योति की झलक मिलती है. एक बार स्वयं का परिचय हो जाने के बाद मन परम के प्रति झुकने के साथ-साथ हर क्षण स्वयं को शक्तिशाली अनुभव करता है.

Tuesday, June 12, 2018

बालवत् जब जीना सीखें


१३ जून २०१८ 
शिशु जब जन्म लेता है, उस वक्त उसका कोई धर्म, जाति या नाम नहीं होता, समाज और परिवार ही उसे ये उपाधियाँ देते हैं. वह किसी का पुत्र कहाता है, किसी का भाई अथवा बहन, बाद में वह स्वयं किसी का माता या पिता बनता है, ये सब उपाधियाँ भी जगत के द्वारा प्रदान की गयी हैं. इस तरह एक ही आत्मा कितने ही नाम ग्रहण कर लेती है. इसी तरह एक ही परमात्मा जीव और प्रकृति की उपाधि ग्रहण करके इतने नाम और रूप धारण किये हुए है. ध्यान में ही हम अपने आत्म स्वरूप को जान सकते हैं, समाधि में जाने पर कोई परमात्मा के चिन्मात्र स्वरूप का भी अनुभव कर सकता है. जब तक शिशु को जगत का बोध नहीं होता, अहम भावना का जन्म नहीं हुआ होता, वह कितना सहज रहता है, ध्यान और समाधि को प्राप्त मन भी जगत की सारी हलचल के मध्य पूर्ण रूप से सहजता का जीवन जी सकता है. अपने कर्त्तव्य कर्मों का पालन करते हुए, अपने चारों तरफ प्रेम और शांति का वातावरण बना सकता है.

जीवन नैया सदा डोलती


१२ जून २०१८ 
जीवन जितना सरल है उतना ही जटिल भी. यहाँ फूल के साथ कांटे भी हैं और सुख के साथ दुःख भी. यहाँ हर शै जोड़े में आती है. स्वास्थ्य के साथ रोग भी है और बचपन के साथ बुढ़ापा भी. जो इन दो के पार निकल गया वह बच गया जो दो में से एक को चाहता रहा और एक से बचता रहा, वह जीवन भर बंधन में फंसा रहा. पुण्य कर्म उदय होने पर सहज ही आनंद का अनुभव होता है, पाप का उदय होने पर विपत्ति आती है. सब कुछ सदा ही ठीक-ठीक चलता रहे ऐसी कामना जो करता है, उसे दो के पार ही जाना होगा. उस स्थिति में मन साक्षी भाव में टिकना सिख जाता है. साक्षी भाव में रहकर, कर्त्तव्य कर्म को पालन करते हुए अपने जीवन को उन्नत बनाने का प्रयत्न करने वाले साधक के जीवन में भविष्य के लिए पाप कर्म जमा नहीं होते. उसका वर्तमान भी संतुष्टिदायक होता है.

Monday, June 11, 2018

खिले सुमन सा मन जिस क्षण


११ जून २०१८ 
प्रकाश, हवा और जल के बिना एक नन्हा सा फूल भी आँखें नहीं खोल पाता, साथ ही उसे धरती का आधार भी चाहिए और बढ़ने के लिए आकाश भी. मानव मन के संबंध में प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है, वायु सजगता का और जल प्रेम का, धरती है देह और आकाश है आत्मा. मन को यदि उड़ान भरनी है तो देह को स्वस्थ व सबल रखना होगा. शास्त्रों और गुरुजनों द्वारा बताए गये ज्ञान का अनुसरण करना होगा, अंतर में प्रेम को पनपने का अवसर देना होगा, यानि भावपक्ष भी सबल हो और बुद्धि पक्ष भी तभी मन आत्मा के आकाश में ऊपर और ऊपर जा सकता है, जहाँ जाकर सारे भेद समाप्त हो जाते हैं. जैसे एक बीज फूल बनकर तृप्त होता है, मन भी जब पूरा खिल जाता है, तभी तृप्ति का अनुभव करता है.

Saturday, June 9, 2018

जीवन जब उपहार बनेगा


९ जून २०१८ 
जीवन हमारे चारों और बिखरा है, हमारे भीतर है, रग-रग में बह रहा है, फिर भी हमारी उससे मुलाकात नहीं होती. जीवन प्रतिपल बरस रहा है, लेकिन हमारे अंतर में कोई रसधार बहती नजर नहीं आती. ध्यान करने बैठें तो विचारों की एक भीड़ चली आती है. शब्दों का ऐसा जाल हमें भीतर जकड़ लेता है कि कहीं आत्मा के दर्शन नहीं होते. संत कहते हैं, यह जगत पूर्ण से उपजा है, अपने आप में पूर्ण है और इसका हर अंश पूर्ण है. हमें संदेह भी नहीं होता कि अपूर्णता का दर्शन केवल मन की कल्पना ही तो नहीं. नकारात्मकता पर हमें पूरा विश्वास है और सकारात्मकता पर संदेह. जीवन विधेय का प्रतीक है और उसी को मिलता है जो पूरे स्वीकार भाव में टिक जाता है. जीवन में जिस क्षण भी हमारे भीतर द्वंद्व समाप्त हो जाता है, हम उसमें स्थित हो जाते हैं,


Thursday, June 7, 2018

मुक्त सदा जो मन तनाव से


८ जून २०१८ 
आज के युग में तनाव या डिप्रेशन का होना एक सामान्य सी घटना हो गयी है. व्यक्ति चाहे किसी भी उम्र का हो, किसी भी वर्ग, धर्म, जाति या लिंग का हो, तनाव से ग्रस्त होना जैसे उसका मौलिक अधिकार बन गया है. आये दिन समाचार पत्रों में इसके बार में हम पढ़ते ही रहते हैं. क्या इसका कोई समाधान है, संत कहते हैं, जीवन आनंद से भरा है, शांति और प्रेम के धागों से बुना है, सुख और ज्ञान इसके फल हैं. ऐसा जीवन पाने की एक ही शर्त है पवित्रता और आत्मशक्ति ! यदि जीवन में अनुशासन हो, ध्यान और साधना के द्वारा आत्मशक्ति का संवर्धन हो तो तनाव उसी तरह दूर रहता है जैसे प्रकाश के सम्मुख अँधेरा. कृष्ण कहते हैं, योग के मार्ग पर किया गया अल्पप्रयास भी महान फल देने वाला होता है. स्वाध्याय, सत्संग, सेवा और साधना के चार पहियों पर जीवन की गाड़ी सहज ही नई मंजिलों की ओर ले जाती है. यह एक ऐसा मार्ग है जिसमें हर कदम पर पूर्णता भी है और आगे बढ़ते रहने की ललक भी. जहाँ प्रियतम के साथ संयोग और वियोग एक साथ घटते हैं.

भय बिनु होई न प्रीति


७ जून २०१८ 
महान संत कवि तुलसीदासजी ने कहा है, ‘भय बिनु होई न प्रीति’, वहाँ प्रसंग है कि जब समुद्र पर बाँध बनाने के लिए श्रीराम ने उससे विनती की तो उसने कोई ध्यान नहीं दिया, जब डर दिखाया तो वह हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया. किन्तु इस उक्ति को हम मानव और भगवान के सबंध में भी जोड़ कर देख सकते हैं. भय ही मानव को अदृश्य परमात्मा के सम्मुख लाकर खड़ा कर देता है. भय को दूर करने के लिए मानव परमात्मा को याद करता है, किन्तु जब तक मन में भय है, ईश्वर की अनुभूति हो ही नहीं सकती. इसी कारण परमात्मा से एक दूरी बनी रहती है और जीवन के अंतिम क्षण तक कोई न कोई भय मना में बना ही रहता है. ध्यान में जब साधक भीतर जाकर भय के कारणों को स्पष्ट देख लेता है, वह उससे मुक्त हो जाता है. मन में जब कोई द्वंद्व नहीं रहता उसी क्षण शांति का अनुभव होता है, और वह स्थिति परम सत्य की ओर इशारा करती है.

Wednesday, June 6, 2018

कबिरा मन निर्मल भया


६ जून २०१८ 
संत कहते हैं, हमारे मन का आकाश यदि विचार रूपी बादलों से ढका न हो तो अपने निर्मल स्वभाव को सहज ही प्राप्त हो सकता है. जब भीतर कोई भय न हो, तनाव या संशय न हो और न ही कोई इच्छा हो, कुछ त्यागने या ग्रहण करने की प्रवृति भी न हो, तभी मानना होगा कि मन खाली है. इस खालीपन को चैतन्य से भरने की आकांक्षा भी न हो, तब जो अनुभूति होगी उसे अनुभव करने वाला भी वहाँ कोई नहीं होगा, मात्र अनुभव ही जब शेष रह जाता है तब जीवन का मर्म समझ में आता है.