२३ जून २०१८
समय की धारा निरंतर बह रही है. जो आज अंकुर है, कल पौधा बनेगा,
परसों वृक्ष और एक न एक दिन काल के गाल में समा जायेगा. किन्तु उससे पूर्व कितने
फल-फूल उसकी शोभा बनेंगे, अनगिनत पंछियों का आश्रयस्थल वह वृक्ष बनेगा. कितने घरों
के द्वार दरवाजे उसकी लकड़ी से आकार ग्रहण करेंगे. उससे उत्पन्न बीज नये अंकुर
बनेंगे, और एक चक्र पूर्ण हो जायेगा. मानव का जीवन भी एक वृक्ष की भांति ही होता
है, शिशु रूप में जो कोमल है, युवा होकर वही कितने उत्तरदायित्व सम्भालता है. अपने
इर्द-गिर्द के वातावरण को विभिन्न रूपों से प्रभावित करता है. उसके सम्पर्क में
आने वाले अनेकों व्यक्तियों को चाहे वे परिवार के सदस्य हों अथवा मित्र, या कार्यक्षेत्र
के सहकर्मी सभी से विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान करता है. प्रौढ़ावस्था को पार
करके एक दिन वही वृद्ध हो जाता है और जो सबको आश्रय देता था स्वयं को शक्तिहीन समझने
लगता है. वृद्धावस्था में भी जो व्यक्ति नियमित दिनचर्या को अपनाकर, कुछ न कुछ
शारीरिक और मानसिक श्रम करके स्वयं को व्यस्त बनाये रखता है और सदा प्रसन्न रहता
है, उसका मन बालवत् हो जाता है. बालक कुछ न कुछ नया सीखने को उत्सुक रहता है, जीवन
का हर दिन उसके लिए नई उम्मीद और नई चुनौती लेकर आता है. वृद्ध भी यदि अंत तक अपने
भीतर के बालक को जीवित रखे और स्वयं को आने वाले भविष्य के लिए तैयार करता रहे तो उसकी
यह अवस्था उसके लिए आनंद पूर्ण बन जाएगी.